‘युज’ धातु से बना शब्द ‘योग’ व्यापक अर्थ धारण करता है, सामान्यतया इसका अर्थ है जोड़ना-मिलाना, व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को समष्टि से, आत्मा(जीवन) को जीव को परमात्मा से।
‘योगश्चित्त वृत्तिः निरोधः’ पतंजलि योग सूत्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के अन्तर्गत स्पष्ट किया कि चित्त की वृत्तियों का निरोध (अर्थात उन पर नियंत्रण) ही योग है और इसके माध्यम से अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का परिष्कार करते हुए मानव जीवन का परम लक्ष्य (जीव का ब्रह्म से एकाकार हो जाना) प्राप्त हो सकता है। जीवन में सद् चित् आनन्द का साक्षात्कार हो सकता है।
‘योगः कर्मसु कौशलम’ अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते हुए सत्कर्मों में कुशलता की प्राप्ति ही योग है। योग मनुष्य के जीवन की विधि-विधान है। यह मानव की सम्पूर्ण अन्तर्निहित शक्तियों के जागरण का उसके सर्वांगीण विकास का पथ प्रशस्त करने वाली परिपूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
यूं तो राजयोग, भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग, हठ योग, और जप योग आदि सभी योग योगशास्त्र के ही अंग हैं, किन्तु यहां हम राज योगान्तर्गत अष्टांग योग पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे।
महर्षि पतंजलि ने अपने योग दर्शन में योगाभ्यास के अवरोधों की चर्चा करते हुए कहा है कि ‘व्याधि, सत्यान, संशय, प्रमादालस्या, विरति, भ्रांति, दर्शनालब्धि, भूमिकत्वा, नवस्थित्वानि, चित्त विक्षेपाः तेन्तरायाः।’ अर्थात उक्त नौ अवरोधों को त्याग देना चाहिए, तभी मन की उच्च तनाव रहित अवस्था की प्राप्ति के लिए शारीर और मन तैयार हो पाते हैं।
व्यक्ति के मन को नियंत्रित करते हुए तन को ‘स्थिर सुखमासनम्’ की अवस्था प्राप्ति के स्तर तक पहुंचाने के पश्चात यम, नियम, आसन, प्राणायाम, के बाद प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि की ओर यात्रा प्रारंभ होती है और शरीर, मष्तिष्क एवं भावलोक में समन्वय स्थापित होता है, दृष्टा भाव से आत्मावलोकन का व सृष्टाभाव से अपने प्रत्येक विचार-कर्म का सकारात्मक ऊर्जा युक्त निर्मल-शुद्ध, आध्यात्मिक वातावरण निर्मित का सुअवसर प्राप्त होता है। स्वामी विवेकानन्द ने योग के संदर्भ में चर्चा करते हुए एक स्थान पर कहा है।
‘प्रत्येक आत्मा अ-व्यक्त ब्रह्म है। बाह्य एवं अन्तः प्रकृति को वशीभूत करके आत्मा के इस ब्रह्मभाव को प्रकट करना ही जीवन का चरम लक्ष्य है’ और इस दिशा में आत्म संयम के साथ पंच कोशों को सुदृढ़ करते हुए प्रत्याहार और धारणा की प्रक्रिया से गुजर कर ध्यान की स्थिति तक पहुंचा जा सकता है।
उक्त सभी प्रक्रियाएं एवं उनके विभिन्न स्तर सैद्धान्तिक रूप से जितने सहज प्रतीत होते हैं, वास्तव में आज के मशीनी भौतिक संसाधनों पर निर्भर युग में हमारी जीवन शैली विभिन्न आयामों में दबाव-तनाव झेलने पर विवश है, हमारा खान- पान, हमारा संस्कार, हमारे विचार, हमारा प्रदूषित पर्यावरण जन्य अस्वस्थ शरीर; इन सबके समवेत प्रभाव हमारे मष्तिष्क को चिन्ताओं और तनावों से ग्रस्त किये रहता है, परिणाम स्वरूप स्वस्थ शरीर और प्रसन्न मन से की जाने वाली यौगिक क्रियाओं का क्रियान्वयन दुरूह होता जा रहा है। तनाव ग्रस्त
मष्तिष्क हमें सहज आनंद से परिपूर्ण जीवन से दूर कर रहा है, ऐसे में बिना किसी बाह्य औषधि के महज कुछ शारीरिक क्रियाओं श्वास-प्रश्वास के व्यवस्थित संचालन से यदि तनाव मुक्त वातावरण का निर्माण सम्भव होता दिखाई पड़ रहा हो तो इससे अच्छा क्या हो सकता है, तो आइये प्राचीन भारतीय मनीषियों, ऋषियों द्वारा आविष्कृत योग में तनाव मुक्ति के उपाय खोजे जाएं।
योग के अंतर्गत आसन, प्राणायाम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि परिपूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रियाएं हैं, इनके नियमित अभ्यास से स्वास्थ्य, प्रसन्नता, तनाव मुक्ति और एकाग्रता सहज जी प्राप्त किये जा सकते हैं। तो आइये अपने मूल विषय ‘तनाव मुक्ति योग के माध्यम से’ पर आते हैं।
तनाव अत्यंत घातक होता है वह मन और तन दोनों पर दुष्प्रभावकारी होता है। अस्सी प्रतिशत रोगों का मूल तो हमारे अपने मन के तनावों से ही उपजता है, अतः स्वस्थ-प्रसन्न, दीर्घायु के लिए तनावों से मुक्ति अनिवार्य तत्व है।
योग के अंतर्गत यूं तो सभी क्रियाएं शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करती है किन्तु उनमें कुछ विशेष रूप से लाभकारी हैं, यथा –
क – प्राणायामों में नाड़ी शोधन
ख – मुद्राओं में सूर्य मुद्रा
ग – ध्यान और
घ – योग निद्रा
क – प्राण+आयाम = प्राणायाम
पूरक-कुंभक एवं रेचक की विभिन्न प्रकार एवं अनुपात में आवृत्तियां ही प्राणायाम का आधार बनती हैं। प्राणायाम कई प्रकार के होते हैं, तनाव से मुक्ति हेतु नाड़ी शोधन एवं भ्रामरी प्राणायाम लाभकारी होते हैं।
ख – मुद्रा प्राचीन ऋषियों-मनीषियों ने शोध एवं अनुभवों के आधार पर स्थापित किया कि हाथ की उंगलियों और अंगूठे में पंच तत्व प्रतिष्ठित हैं, इनसे निर्मित अलग-अलग मुद्राएं अलग-अलग तत्वों को जागृत-सक्रिय कर शरीर एवं मन को लाभ पहुंचाती हैं। मुद्राएं कई होती हैं, इनमें से ‘सूर्य मुद्रा’ नामक हस्तमुद्रा मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हुए उसे तनाव मुक्त करती है।
ग – ध्यान-अष्टांग योग में सातवें अंग के रूप में ध्यान का निरूपण है, मूलतः ध्यान के चार चरण हैं।
१‧ देखना
२‧ सुनना
३‧ श्वास लेना
४‧ आंखें बंद कर मौन होकर सोच पर ध्यान को केन्द्रित करना।
ध्यान तीन प्रकार के बताये गए हैं
१‧ स्थूल ध्यान
२‧ ज्योतिर्ध्यान और
३‧ सूक्ष्म ध्यान
नींद। यह वो नींद है जिसमें जागते हुए सोना है, इस अर्द्धचेतनावस्था में मनुष्य निष्क्रिय-अनासक्त भाव से संसार में व्यवहार करता है। परिणाम स्वरूप शरीर एवं मस्तिष्क दोनों स्वरूप रहते हैं। व्यक्ति तरोताजा रहता है, नींद की कमी दूर होती है तथा थकान, तनाव एवं अवसाद भी दूर होता है।
चूंकि तनाव से मुक्ति में शान्ति प्रदान करने के साथ-साथ श्वास की गति एवं रक्त संचार और दबाव को नियंत्रित करने में सर्वाधिक प्रभावकारी सिद्ध होती है यह प्रक्रिया, अतः इसे अभ्यास में लाने हेतु संक्षेप में इसका विवरण प्रस्तुत है –
किसी खुले स्थान पर ढीले वस्त्र पहनकर योग निद्रा के लिए शांत भाव से लेट जायें, दोनों पैरों के बीच लगभग एक फुट की दूरी, हथेलियां कमर से अंगूठे पर ले जाइये। क्रम से पांव की सभी उंगलियां, पांव का तलवा, एड़ी, पिण्डली, घुटना, जांघ, नितम्भ, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है। इसी तरह बायां पैर भी शिथिल करें। सहज सांस लें व छोड़ें, कल्पना करें समुद्र की शुद्ध वायु आपके शरीर में आ रही है व गंदी वायु बाहर जा रही है।
कल्पना करें कि धरती माता ने आपके शरीर को गोद में उठाया हुआ है। अब मन को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे, सभी उंगलियों पर ले जाइए। कलाई, कोहनी, भुजा व कंधे पर ले जाइये। इसी प्रकार अपने मन को बाएं हाथ पर ले जाएं। दाहिना पेट, पेट के अंदर की आंतें, जिगर, अग्नाशय दायें व बाएं फेफड़े, हृदय व समस्त अंग शिथिल हो गये हैं।
हृदय पर ध्यान केन्द्रित कीजिये देखिये हृदय की धड़कन सामान्य हो गयी है। ठुड्डी, गर्दन, होठ, गाल, नाक, आंख, कान, कपाल सभी शिथिल हो गए हैं। अन्दर ही अन्दर देखिए आप तनाव रहित हो रहे हैं। सिर से पांव तक आप शिथिल हो गए हैं। आक्सीजन अंदर आ रही है। कार्बन डाई-आक्सीजन बाहर जा रहा है। आपके शरीर की बीमारी बाहर जा रही है। अपने विचारों को तटस्थ होकर देखते जाइये। कुछ समय तक इसी स्थिति में रहने के बाद अपने मन को दोनों भौहों के बीच में लाएं व योगनिद्रा समाप्त करने के पहले अपने आराध्य का ध्यान कर व अपने संकल्प को ३ बार अंदर ही अंदर दोहराएं। लेटे ही लेटे बंद आंखों में तीन बार ॐ का उच्चारण करिए। फिर दोनों हथेलियों को गरम करके आंखों पर लगाएं व पांच बार सहज सांस लीजिए। अब अंदर ही अंदर देखिए आपका शरीर, मन व मस्तिष्क तनाव रहित हो गया है।
इस प्रकार योग की विभिन्न प्रक्रियाओं का व्यवस्थित अनुपालन एवं नियमित अभ्यास हमें आज की भाग-दौड़ भरी- तनाव भरी जिंदगी में स्वस्थ मन-मस्तिष्क के साथ-साथ स्वस्थ ऊर्जावान शरीर प्रदान करता है। तनाव मुक्त जीवन की प्राप्ति का यह एक प्राकृतिक-सहज उपाय है जिसे अत्यन्त प्राचीन काल से ही हमारी भारतीय जीवन पद्धति में स्थान प्राप्त रहा है। तो आइये हम भी इसे अपनाते हुए सत् चित् आनंद की अनुभूति के साथ अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए अपना जीवन सफल करें। स्वयं में धन्यता की अनुभूति के साथ ही साथ समूची मानवता के उत्थान में सहयोगी बनें।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वेसन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् भाग भवेत॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
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प्रदीप त्रिपाठी