ऑनलाईन क्लास : फर्स्ट क्लास
आज के नए बच्चे जब अपने माता पिता या दादा दादी से उनके बचपन एवं स्कूल के बारे में सुनते हैं तो वे आश्चर्यचकित हो उठते हैं। उन्हें विश्वास नहीं होता कि कैसे उनके स्कूल पेड़ एवं बगीचों के बीच बने होते था जहां सभी बच्चे पेड़ों की छांव में टाट-पट्टी पर बैठकर पढाई़ किया करते थे।
आज हमारे सामने सूचनाओं का भंडार है, एक जानकारी के स्थान पर कई जानकारियां उपलब्ध हैं। आज शिक्षा इतनी आधुनिक बन गयी है कि सामान्य क्लासेज को आधुनिक संसाधनों से लैस स्मार्ट क्लासेज में बदला जा रहा है। किताबों से भरे बैग अब स्मार्ट-फोन, टैब एवं लैपटॉप सिमटते जा रहे हैं। ग्रंथालय के स्थान पर साइबर लाइब्रेरी एवं डिजिटल लाइब्रेरी का निर्माण बड़ी तेजी से हो रहा है। अधिकतर किताबें ऑनलाइन उपलब्ध हैं एवं दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ भारत में भी ऑनलाइन क्लासेज एवं कोर्स बढ़ते ही जा रहे हैं।
यह बदलाव तेजी से हो ही रहे थे कि अचानक २०२० के शुरुआत में दुनिया के सामने एक बडा ़संकट आकर खडा ़हो गया कोरोना महामारी के रूप में। भारत में पूरी तरह से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। स्कूल-कॉलेज के साथ साथ उच्च शिक्षण संस्थान भी पूरी तरह बंद कर दिए गए। जब लॉकडाउन हो गया तो एकमात्र विकल्प बचा इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन अध्ययन। हालांकि यह माध्यम पहले भी उपलब्ध था पर अब इसको और बेहतर और आसान बनाने के लिए कई तरीकों को खोजा जाने लगा जिनमें फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल-क्लास रूम, गूगल मीट, जू़म, हैंग-आउट्स आदि शामिल हैं।
यदि हम स्कूल स्तर पर बात करें तो लगभग १२ वर्ष तक के विद्यार्थियों को उनके अभिभावकों को साथ में लेकर इस माध्यम का उपयोग किया जा रहा है जिसमें अधिकतर व्हाट्सएप एवं गूगल क्लास रूम जैसे माध्यम उपयोगी साबित हो रहे हैं। शिक्षक होमवर्क के साथ अध्ययन सामग्री व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से अभिभावकों तक भेज देते हैं और यदि विद्यार्थियों को कोई समस्या होती है तो वह अपने बड़ों की सहायता ले लेते हैं।
१२वीं क्लास तक के विद्यार्थियों के ऑनलाइन शिक्षण के लिए जूम और गूगल मीट एवं गूगल क्लास रूम ऐप का प्रयोग किया जा रहा है जिससे सम्पूर्ण क्लास के विद्यार्थी एक साथ अपने शिक्षक को सुन सकते हैं एवं उनसे प्रश्न भी पूछ सकते हैं। पढाई़ के साथ साथ रचनात्मक विधाओं को सीखने का भी यह बहुत ही उपयोगी माध्यम है जैसे डांस, गायन, चित्रकारी, फैशन-डिजाइनिंग, कुकिंग, एक्सरसाइज आदि।
कम उम्र के बच्चों के ऑनलाइन अध्ययन के प्रति अभिभावक को भी जागरूक रहने की बहुत आवश्यकता है। जब वह पढ़ रहे हों तो इस बात की पुष्टि कर लें कि बच्चे अध्ययन से ही संबंधित विंडोज या पेज का उपयोग करें एवं दूसरे विंडोज को लॉक किया जा सकता है। इसके लिए कई साफ्टवेयर भी आते हैं जिनको इंस्टॉल करके बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखा जा सकता है कि क्लास के दौरान उन्होंने कौन से पेज पर ओपन किये हैं। इसके अलावा अभिभावक को चाहिए कि वह अपने बच्चों में नैतिक मजबूती बढाए़ं ताकि वो सही दिशा में आगे बढ़ सकें।
उच्च शिक्षण संस्थान भी ऑनलाइन शिक्षा का सहारा बखू़बी ले रहे हैं। ऐसे विद्यार्थियों के पास अमूमन स्मार्ट फोन टैब एवं लैपटॉप होते हैं और उन्हें नई – नई तकनीक की भी गहरी समझ होती है। डॉ‧मनीषा मल्होत्रा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर हैं उनके अनुसार – ‘जब हमारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए तो यही एक माध्यम था जिससे शिक्षण कार्य निरन्तर चल रहा है। और विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया भी काफी सकारात्मक रही है। फिर भी इसे और बेहतर बनाया जा सकता है।’
उच्च शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के वैचारिक विकास के लिए समय समय पर सेमिनार, कांफ्रेंस एवं सम्मेलनों का आयोजन होता रहता है जिसमें भारी संख्या में देश विदेश से छात्र एवं विषय-विशेषज्ञ इकट्ठा होते हैं इसमें काफी समय और धन खर्च होता है। परन्तु अब ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया जाने लगा है जो काफी सफल और उपयोगी साबित हो रहे हैं। देश विदेश से प्रोफेसर्स, विशेषज्ञ एवं विद्यार्थी एवं शोधार्थी एकत्रित होकर अपने विचारों का आदान प्रदान कर रहे हैं।
इंटरनेट के जरिये अध्ययन में ग्रामीण विद्यार्थियों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहां नेटवर्क की बड़ी समस्या रहती है इसलिए अभी भी इन क्षेत्रों में विद्यार्थी पुस्तकों के साथ ही सहजता महसूस कर पाते हैं और उनका विश्वास क्लास अध्ययन में अधिक है। दूसरी तरफ मोबाइल फोन, टैब एवं लैपटॉप का अधिक समय तक प्रयोग करते रहने से आंखों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही ऑनलाइन क्लासेज ़के लिए उपयोग में आने वाले ऐप का प्रयोग करते वक़्त अपने गोपनीय और आवश्यक डेटा को पूर्णतया सुरक्षित कैसे रखें—इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
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मिठाई लाल