कैसे मिले मन की शांति
सूचना क्रांति के इस दौर में जहां शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई है वहीं जनसंख्या अनुपात में बहुत अंतर होने के कारण इसने गलाकाट प्रतिस्पर्धा को भी जन्म दिया है। हर संस्थान अपने लिए सर्वोत्तम व्यक्ति चाहता है और हर व्यक्ति सर्वोत्तम संस्थान में जाना चाहता है, और इस तरह से एक चूहा-दौड़ शुरु हो जाती है और इंसान मन की शांति खो बैठता है।
फिल्म थ्री इडियट्स में भले ही इस बात(शांति) को मजाक में कहा गया था कि हमारे जन्म तक के लिए जो स्पर्म दौड़ में प्रथम आया वही अंडे के भीतर घुस पाया‧‧‧ लेकिन वहीं बहुत गंभीर बात भी छुपी थी इसमें कि प्रतिस्पर्धा तो इंसान के जन्म से पहले ही शुरु हो गई थी। जब बच्चा बडा होता है तब वह यदि मां बाप न भी चाहें तब भी वो अपने आप को इस रैट रेस में शामिल पाता है। रही सही कसर आज की शिक्षा व्यवस्था ने पूरी कर दी है। कभी बच्चा दसवीं बारहवीं में गुड सेकेंड डिवीजन भी ले आता था तो पूरे मोहल्ले में मिठाई बंट जाया करती थी लेकिन आजकल सीबीएसई, आईसीएसई व इंटरनेशनल बोर्ड्स के मार्किंग सिस्टमों के चलते अधिकांश बच्चे अस्सी नब्बे प्रतिशत अंक तो यूं ही प्राप्त कर लेते हैं। यदि बच्चा किसी विषय में सौ में से पिचानवे अंक ले आये तो भी उसे शाबासी नहीं मिलती बल्कि कभी कभी तो वह खुद ही उन पांच अंकों के लिए दुखी हो जाता है जो उसे नहीं मिले।
सवाल उठता है कि बच्चों को नब्बे पिचानवे या सौ प्रतिशत अंक ही क्यों चाहिए? इसका जवाब यह हो सकता है कि यदि अच्छे अंक नहीं आयेंगे तो वे आगे पढ़ने के लिए अच्छे संस्थान में जगह नहीं पा सकेंगे और फिर अच्छी नौकरी नहीं मिल पायेगी उन्हें। यदि अच्छे अंक या अच्छी नौकरी नहीं मिली तो दूसरे लोग उसे स्वीकार नहीं करेंगे। शिक्षा के बाद नौकरी, बिजनेस, रिश्ते हर जगह वह अपने पैर पसारे हुए है और इंसान हर जगह उससे मुकाबला कर रहा है। आजकल की दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या में भारी तादाद में इजाफा हुआ है। कई नामचीन लोगों की मानसिक तनाव में आ कर की गई आत्महत्या भी इस तर्क को और मजबूती प्रदान कर रही है। सवाल यहां यह होना चाहिए कि जीवन में अधिक महत्वपूर्ण क्या है? इस रैट रेस में शामिल होना या अपने मन की शांति? क्या वे इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के चलते मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक तनाव में आ रहे हैं? यदि वे इन प्रश्नों के उत्तर में यह पाते हैं कि इन प्रतिस्पर्धाओं के चलते वे बहुत तनाव में आ रहे हैं तो उन्हें ठहर कर सोचने की जऱूरत है। बढ़ता मानसिक व शारीरिक तनाव गंभीर अवसाद, हायपर टेंशन, डायबिटीज आदि कई बीमारियों को जन्म देता है। यदि संपूर्ण स्वास्थ्य, जिसमें मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक स्वास्थ्य शामिल हैं, ठीक रहेगा तो ही इंसान अपने लिए निर्धारित किये लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकेगा। अच्छे स्वास्थ्य के लिए तीन चीजें ही महत्वपूर्ण हैं और वे हैं संतुलित आहार, संतुलित व्यायाम व संतुलित नींद। यदि इनमें से एक भी गड़बड़ है तो अन्य दोनों पर भी असर पड़ता है और इस तरह पूरा स्वास्थ्य गड़बड़ हो जाता है। आजकल पढाई़ या काम की अति के चलते अधिकांश युवाओं के रूटीन खराब ही हो रखे हैं। वे न तो ठीक से खा पी रहे हैं, न ठीक से व्यायाम कर रहे हैं और न ही ठीक से सो रहे हैं। यह सब उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
संतुलित खानपान को सही समय पर सही खाना खा कर व सही मात्रा में पानी पी कर ठीक किया जा सकता है। संतुलित व्यायाम के लिए एक सप्ताह में पांच दिन तक रोज चालीस मिनट की ब्रिस्क वॉक करके या और कोई व्यायाम कर के ठीक किया जा सकता है व संतुलित नींद के लिए संतुलित भोजन व संतुलित व्यायाम के साथ रोज आधा घंटा ध्यान किया जा सकता है। ध्यान अपने चित्त को शांत करने में बहुत मदद करता है। शुरुआत में ध्यान करना मुश्किल प्रतीत होता है तो शुरुआत दस मिनट से की जाये। ध्यान का बहुत ही साधारण अर्थ है अपनी सांसों को आते जाते महसूस करना और लंबी व गहरी सांस लेने की प्रैक्टिस करना। इस तरह से जब भोजन, व्यायाम व नींद तीनों पर काबू आ जाये तो व्यक्ति संपूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है।
यदि मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक रूप से व्यक्ति स्वस्थ है तो फिर वह अपनी प्राथमिकता सूची में क्रमानुसार आ रहे दूसरे मदों पर काम कर सकता है। अब यदि बात शिक्षा की हो या बिजनेस की या रिश्तों की या किसी भी प्रतिस्पर्धा की तो शांत चित्त व्यक्ति उन क्षेत्रों में आती दिक्कतों से परेशान नहीं होता बल्कि उन्हें एक समस्या के रूप में लेता है व उनका हल निकालने की कोशिश करता है। कहने का अर्थ यह है कि यदि मन में शांति है तो कोई भी समस्या या कोई भी प्रतिस्पर्धा उसे तनाव नहीं दे सकती व वह बड़ी आसानी से अपने लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। इस सबके साथ एक सबसे बडा मूलमंत्र जो याद रखना है वह है ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’।
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सुनीता पाण्डेय