बचपन रखो जेब में

Published by विश्वनाथ सचदेव on   March 31, 2017 in   Hindi

टीवी हमेशा की तरह चल रहा था । मैं देख भी रहा था, सुन भी रहा था, नहीं भी सुन रहा था । अचानक एक वाक्यांश कानों से टकराया । लगा जैसे वह कानों में थम गया । जैसे कोई मनपसंद चीज खाने के बाद देर तक उसका स्वाद मुंह में घुलता रहता है न , वैसे

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