संगीत में छिपा है सुकून

Published by रविराज प्रणामी on   March 16, 2017 in   Health Mantra

म्यूजिक थैरेपी में व्यक्ति के स्वभाव, उसकी समस्या और आसपास की परिस्थितीयों के मुताबिक संगीत सुनाकर उसका इलाज किया जाता है | फिलहाल एक तथ्य स्थापित हुआ है कि म्यूजिक थैरेपी से महिलाओं को काफी फायदा होता है क्योंकी उनको घर के साथ कार्यालय की जिम्मेदारी भी संभालनी होती है | काम का बोझ बढ़ता है, तो उन पर तनाव हावी हो जाता है, ऐसे में म्यूजिक थैरेपी उनके लिए लाभकारी साबित होती है |


संगीत चिकित्सा सीधे ब्रह्म संगीत से जुड़ी है, नाद संगीत से जुड़ी है और सरल करें, हमारे उस शास्त्रोक्त संगीत से जुड़ी है, जिससे हम दूर होते जा रहे हैं| मृत्यु शैया पर पड़े जातक को अनादि काल से महामृत्युंजय मंत्र सुनाया जाता है | गर्भ संगीत और गर्भ संस्कार की विवेचना हम करते ही हैं | प्रसूता को कैसा संगीत सुनना चाहिए ये भी सुझाया जाता है! महाभारत में प्रसंग है कि किस तरह कृष्ण के चक्रव्यूह को भेदने संबंधित सांगितिक वार्तालाप को सुभद्रा सुण रही थीं और गर्भ में अभिमन्यु किस तरह उसे अभिग्राह्य कर रहा था | तो गर्भावस्था के दौरान वीणा, बांसुरी और मंत्रों को सुनने की सलाह सामवेद में भी वर्णित है |

हमारा संगीत शास्त्र पूरी तरह प्रकृति प्रदत्त मानवीय मनोदशा और संवदनाओं पर आधारित है | हर राग-रागिनी मनुष्य की दिमागी स्थिति, दिन-रात्रि के प्रहर या समय व ऋतुओं पर आश्रित है | हर परिस्थिति इंसानी मूड बदलने के लिए काफी है | बच्चे को सुलाना हो, तो मां लोरी गाती है, लोरी यानी ऐसे सुरों से मिश्रित गायन जो इंसानी मस्तिष्क को ट्रांस में ले जाता है, उसे मीठी नींद सुला देता है | न जाने ऐसे कितने ही गीत रचे जा चुके हैं, जिन्हें सुनते-सुनते बच्चे ही नहीं बड़े-बुजुर्ग भी निद्रा को प्राप्त हो जाते हैं | बागेश्री या मालकौंस में गहरी मीठी नींद सुलाने का सामर्थ्य है | इसी तरह प्रभाती या राग भूप या भूपाली को आजमा लीजिए |  सुबह सवेरे इन राग रागिनियों के स्वर छिड़े हों और आप सामान्य रूप से कितनी ही गहरी नींद में क्यों ना हों, प्रसन्न भाव से न उठ बैठे तब कहिए | न केवल आप जाग उठेंगे ‘बल्कि इन रागों के स्वर मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव जमाएंगे कि आप ईश्वर की रची इस सुंदर सृष्टि के लिए उसे बारंबार सराहेंगे | सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर यों ही ‘ज्योति कलश छलके’ को सिर आँखों से लगाए हुए नहीं हैं | फिर लता मंगेशकर ने ही गाया है न कि ‘जब दिल को सतावे गम तू छेड़ सखी सरगम! ‘ यानी सरगम में ही हैं गमों के इलाज |

दौड़-भाग भरी जिंदगी में आज लोगों को मानसिक परेशानियों, तनाव-दबाव और अन्य समस्याओं से जूझना पड़ता है और संगीत इन सबसे बाहर निकलने का कारगर उपाय हैं | अत्यधिक सक्रिय व्यक्तियों जैसे राजनेताओं, चिकित्सकों, उद्योगपतियों, व्यवसायियों, अभिनेताओं, मीडियाकर्मियों को अपने दिन की शुरुआत मॉर्निंग रागों से करनी चाहिए | मसलन किसी दिन उठते ही राग ललित सुन ली, किसी दिन राग तोड़ी, कभी जोगिया, रामकली या भैरवी सुन ली | ये राग आप के स्नायु तंत्र को आंदोलित करने वाले हैं और विश्वास कीजिए दिनभर आप खुद को शांतचित्त, स्फूर्त और तरोताजा महसूस करेंगे |

भैरवी उनके लिए भी सुखद अनुभूति लाती है, जिन्हें दमे या अनिद्रा या नजले की शिकायत रहती है| यदि आप तनाव से गुजर रहे हैं, परेशान हैं तो राग सोरठ, जयजयवंती या फिर मल्हार सुनिए टेंशन गया…सरदर्द से ग्रसित हैं, तो राग सारंग और उसके अनेक प्रकार हैं आप के लिए उच्च रक्तचाप, डिप्रेशन के साथ राग दरबारी न्याय करती है | स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए भी है राग शिवरंजनी |

राग दीपक में संध्याकाल में दीये जलाने का चमत्कार तो रहा ही है, ये रोग गैस या एसिडिटी की समस्या को ख़त्म करता  है | राग देशकार कमजोरी से निजात दिलाता है तो राग पूरिया और रागेश्री में कायाकल्प का सामर्थ्य है | उधर राग सोहनी और भटियार मानसिक बीमारीयों से छुटकारा दिलाने में सहायक है | इसी तरह रोग पीलू में उत्सवधर्मी तत्त्व हैं जबकि भीमपलासी में ह्रदय विकार दूर करने का माद्दा है | प्राचीनकाल में युद्ध की दुन्दुभी बजा करती थी, तो तुरही पर राग जैटा जैसे स्वरों को ही छेड़ा जाता था, जो योद्धा में पराक्रम और साहस मिश्रित जोश भर दिया करते थे |

संगीत शास्त्र और संगीतज्ञ तो राग रागिनियों या उन पर आधारित फिल्मी-गैर फिल्मी गीतों से बेहतर कोई विकल्प ही नहीं मानते, विभिन्न मानवीय अवस्थाओं से जूझने के लिए, इसीलिए इन दिनों संगीत चिकित्सा को लेकर जिज्ञासा, जागरूकता और रुझान पनप रहा है | कई युवा संगीतज्ञ, संगीत विशारद यहां तक कि मेडिकल प्रॅकि्टशनर भी म्यूजिक थैरेपी की वकालत कर रहे है | न्यूरोलॉजिस्ट भी म्यूजिक थैरेपी के प्रभावों को स्वीकारते हैं कि हैड इंजरी, पैरॅलीसिस (लकवा) में संगीत चिकित्सा का सपोर्ट बहुत उपयोगी है, पर ऐलोपैथीस्ट स्पष्ट भी लरते हैं कि अभी तक कोई डॉक्यूमेंटेड फैक्ट सत्यापित नहीं हुआ है | मतलब ये कि मालकौंस में तो वों ताकत रही है कि रोग शैया पर पड़े लकवाग्रस्त पैरों से लाचार गुरु, बावरे बैजू की मालकौंस टेर (मन तड़पत हरि दर्शन को) सुन उठ बैठते हैं और चलने लग जाते हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि मालकौंस सुनकर हर लाचार चल पड़ेगा | संगीत चिकित्सा भी दरअसल रोगी या अभीष्ट व्यक्ति के संगीत ज्ञान और संगीत समर्पण पर टिकी है, अदरक का स्वाद हर कोई क्या जाने |

सामान्य तौर पर रोगियों को संगीतोपचार के नाम पर भजन, सुगम शास्त्रीय रचनाएं या फ़िल्मी गीत ही सुनाए जाते हैं, जो मस्तिष्क उद्दीपन में सहायक हैं | संगीतविद तो अब रागों के साथ साथ तालों को भी लेकर चल रहे हैं | ताल लय का, राग का आधार है | इस विज्ञानपरक कसौटी में यदि चिकित्सकों और संगीतकारों की मदद से म्यूजिक-थैरेपी पर कड़ा अनुसंधान हो, तो कई चौंकाने वाले सकारात्मक नतीजे देखे जा सकते हैं, क्योंकि सभी प्रकार की व्याधियों-रोगों से उबरने में मस्तिष्क ही सबसे सहाय होता है और मस्तिष्क पर संगीत का प्रभाव बहुत गहरा होता है, संगीत नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल सकता है और ‘म्यूजिक थैरेपी’ का आधार ही यही है |

  – रविराज प्रणामी (कालनिर्णय, अगस्त २०१४)