इंटरनेट : बुजुर्गों का साथी
हमारे पड़ोस में एक दादाजी रहते हैं। दादाजी और उनकी पत्नी यानी दादीजी। दोनों की उम्र ८० बरस से ऊपर है। दो लड़के हैं, दोनों बाहर, दो बेटियां हैं जो अब अपनी ससुराल की हो गयी हैं। दादाजी अब रिटायर हो गए। अच्छी भली पेंशन मिलती है, गुजारा ठाठ से होता है। देखा जाए तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन महसूस किया जाए तो बहुत सी दिक्कतें हैं।
यूं तो काम वाली आती है, बर्तन, झाडू-पोंछा, डस्टिंग सब कर जाती है। खाना बनाने वाली सहयोगी परोस भी जाती है। दोनों ही बुजुर्गों के पैरों में भीषण तकलीफ है। आर्थराइटिस ने चलना-फिरना लगभग बंद ही करवा दिया है। शाम को बर्तन वाली सहयोगी आ के सारे बर्तन वहां से समेट लेती है। सुबह सब्जी वाला भी आ के पूछ लेता है। दूध भी आ ही जाता है। कहने का मतलब, दादा-दादी चुपचाप बैठे रहें, तब भी सब काम हो जाते हैं। दिक्कत तो तब पेश आती है, जब सबको तनख्वाह देनी होती है। दिक्कत है पैसे कैसे निकाले जायें। दादाजी एटीएम ऑपरेट नहीं कर पाते। किसी की मदद लेनी पड़ती है।
दो साल पहले जब वे एटीएम गए और वहां खड़े एक लड़के को न केवल कार्ड थमाया, बल्कि पिन नंबर भी बताया। गनीमत थी कि लड़का शरीफ था वरना कोई भी बहाना बना के पैसा हड़प कर सकता था। इंटरनेट चलाना उन्हें आता नहीं।
वहीं घर के ठीक सामने एक बुजुर्ग आंटी रहती हैं। उम्र लगभग ७०-७२ की होगी लेकिन क्या स्मार्टनेस है उनमें। मोबाइल पर इंटरनेट सम्बन्धी काम ऐसे धड़ल्ले से करतीं हैं कि नई उमर के लोग शरमा जाएं। वे अपना बिजली, पानी, सिलेंडर, केबल टीवी, मोबाइल का बिल सब मोबाइल से ही जमा करती हैं। दिन में इंटरनेट पर बढ़िया बढ़िया शॉर्ट फिल्म्स, स्वास्थ्य संबंधी वीडियो देखती हैं, मनपसन्द गाने सुनती हैं। फेसबुक आईडी भी है। व्हाट्सएप मैसेंजर के जरिए बच्चों से गपियाती हैं। तस्वीरें देखती हैं। गाहे-बगाहे वीडियो चैट करती हैं। सुबह सबेरे योगा- प्राणायाम का वीडियो लगा के योगा करती हैं। घरेलू सहायिकाएं भी अब कैश की जगह नेट बैंकिंग या किसी भी बैंकिंग एप के जरिए पैसा लेना ज्यादा पसन्द करती हैं। सब्जी वाला तक पेटीएम करने को कहता है। इस कोरोना काल ने तो और भी महत्व बढादिया है कैशलैस शॉपिंग का।
लेकिन ये सब करने के लिए इंटरनेट का बुनियादी ज्ञान होना तो आवश्यक है न? सामने वाली विभा जी के बच्चे भी बाहर ही रहते हैं, लेकिन मोबाइल ने उन्हें एकदम आत्मनिर्भर बना दिया है। अब जरूरत के मुताबिक पैसा वे अपने ई-वॉलेट में रखती हैं। पेंशन का हिसाब किताब भी घर बैठे ही करती हैं।
आज के इस अति व्यस्त, कंप्यूटराइज्ड जमाने में सबसे अधिक मुश्किल बुजुर्गों के सामने आ खड़ी हुई है। दौड़ती भागती इस दुनिया के बुजुर्गों को समझ लेना चाहिए कि आर्थराइटिस उनके पैरों को लाचार कर सकता है दिमाग को नहीं। यदि उन्हें इंटरनेट की बुनियादी जानकारी भी हो, तो उसके सहारे अपना समय अच्छी तरह निकाल सकते हैं। इंटरनेट बुजुर्गों का बहुत बडासाथी है अगर वे थोडा बहुत भी उसका इस्तेमाल सीख लें तो।
एक और दादी जी हैं। जब तक उनकी आंखें साथ दे रही थीं वे धार्मिक ग्रन्थ पढ़ती रहती थीं। उनकी आंखें थक जाती हैं। उनके कमरे में जो भी आता है वे उससे मनुहार करती हैं – कोई सुंदर कांड सुना दे, पर इतना समय होता ही नहीं। फिर उनकी पोती ने रास्ता निकाला। उसने दादी को यूट्यूब पर सुंदर कांड सर्च करना सिखा दिया है। दादी के कमरे से अब सुमधुर कंठ में सुंदर कांड सुनाई देता रहता है कभी सुरेश वाडकर के स्वर में तो कभी मुकेश के स्वर में।
इंटरनेट तमाम जानकारियों से भरा पडाहै। जितनी जरुरत ये युवाओं की पूरी करता है उतनी ही बुजुर्गों की भी पूरी करता है। सुमन के दादाजी तो देश-दुनिया की सारी खबरें अपने मोबाइल पर ही सुनते हैं। सुमन की दादी को अब मोबाइल का बैलेंस खत्म होने की चिंता नहीं रहती। वाई-फाई है, सो वे मजे से अपनों को व्हाट्सएप कॉल करके बतियाती रहती हैं। मेरे पिताजी के मित्र हैं। लेखक हैं। उम्र यही कोई बयासी-तेरासी साल होगी। पिछले दिनों जब वे घर आये तो मैंने उन्हें कहा कि वे सोशल मीडिया पर क्यों नहीं लिखते? उन्होंने जो़र से इंकार में सिर हिलाया।
‘अरे न न‧‧‧मेरे वश का नहीं ये। मेरी तो कागज कलम ही ठीक है। जब तक लिख पा रहा हूँ ठीक है, नहीं लिख पाऊंगा तो बस खत्म जिन्दगी।’
मैंने उन्हें प्यार से झिड़का-‘क्या चाचाजी‧‧‧‧इतना बडामोबाइल हाथ में लिए हैं, केवल फोन करने के लिए? आप वॉइस टाइपिंग कीजिये न। ये माइक दबाइये और बोलते जाइये।’ उनके बहुत ना-नुकुर के बाद भी मैंने उनकी आईडी बनाई और वॉइस-टाइपिंग करना सिखाया। कुछ दिनों बाद ही मैंने उनकी एक लम्बी पोस्ट सोशल मीडिया पर देखी। उस पर आई टिप्पणियों के जवाब भी वे दे रहे थे।
चाचाजी के दोनों बेटे बाहर रहते हैं। छोटी-मोटी तकलीफों के लिए वे खुद ही अपने डॉक्टर के क्लिनिक तक चले जाते हैं। अब तो डॉक्टर ने भी ऑनलाइन सेवाएं शुरू कर दीं हैं तो एक बार मर्ज दर्ज करवाने के बाद वे ऑनलाइन प्रिस्क्रिप्शन भेजते हैं। केमिस्ट लिखी हुई दवाइयां घर पहुंचा देता है। चाचाजी को कोई और तकलीफ होती है तो वे वॉइस मैसेज भेज देते हैं डॉक्टर के पास।
नई तकनीक ने जिन्दगी बहुत आसान कर दी है। खासतौर पर उन बुजुर्गों की जो अकेले हैं। यदि इंटरनेट संबंधी इतनी जानकारी वे ले लें, कि उन्हें कब किस साधन से अपनी समस्या संबंधित तक पहुंचानी है तो उनकी आधी समस्याएं हल हो जाएं। बहुत से लोग इस तकनीक का फायदा उठा रहे हैं।
कई बार हम बुजुर्गों को कोई नई तकनीक सिखाते-समझाते हुए बहुत जल्दी खीझने लगते हैं। चूंकि हम इस नई टेक्नोलॉजी के जमाने के हैं, इसके आदी हैं इसलिए ये हमें मुश्किल नहीं लगती। लेकिन हमारे बुजुर्ग तो अभी ही इस टेक्नोलॉजी की जद में आये हैं। उन्हें बटन वाले फोन में भी तो केवल फोन लगाना ही आता था। याद कीजिये, उस पुराने मोबाइल में इन बुजुर्गों ने कभी मैसेज का इस्तेमाल किया क्या? नहीं न? तो अब इस बड़े से स्मार्ट फोन पर उंगलियां चलाना सीखने में उन्हें थोडावक्त लगेगा। वक्त तो उन्हें इंटरनेट चलाना सीखने में भी लगेगा, लेकिन वे सीख जाएंगे इसमें संदेह नहीं। तो अब तक जो माता पिता हमें सिखाते आये हैं, अब उन्हें सिखाने की हमारी बारी है। खुश हो जाइए कि इसी बहाने हम उनके गुरु के रोल में हैं। खीझने की जरूरत नहीं है। एक बार में वे सब कुछ नहीं सीख पाएंगे। थोडाथोडाकरके सिखाइये। जब किसी एक साइट को चलाने के अभ्यस्त हो जाएं, तब दूसरा कुछ सिखाइये। हमेशा सीधी सच्ची जिन्दगी जीने वाले बुजुर्गों को इंटरनेट द्वारा होने वाले फ्रॉड के बारे में भी सिखाना-बताना बहुत जरूरी है। ऐसा न हो कि अपनी जीवन भर की पूंजी वे एक झटके में गंवा बैठें। मोबाइल में इंटरनेट ऑपरेट करना इतना मुश्किल नहीं है। जरूरत है, अपने बुजुर्गों को थोडासा समय दे के सिखाने की ताकि जरूरत पड़ने पर वे इस इंटरनेट रूपी अलादीन के जिन्न से मदद ले सकें।
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वन्दना अवस्थी दुबे