बुनियादी कानूनी जिम्मेदारियां
मनुष्य समूह में रहता है। बहुत लोगों के एक साथ रहने के कारण उनके हितों में टकराव होना स्वाभाविक है। इस टकराव से बचने के लिए कुछ ऐसी विधियां जरूरी हैं जिनका समूह के सब लोग पालन करें। ये विधियां अनेक स्तरों पर निर्मित की जाती हैं। हमारे देश भारत की सबसे बड़ी विधि हमारा संविधान है। उसके बाद हमारी संसद और विधानसभाओं द्वारा बनाए गए अधिनियम और उन अधिनियमों के अंतर्गत बने हुए नियम व विनियम हैं। इन विधियों और नियमों के अंतर्गत हमारे नगरीय निकाय और ग्राम पंचायतें भी अपने स्तर पर कुछ विधियां बना सकती हैं। यदि हम कहीं नौकरी करते हैं तो वहां भी नियोजक उक्त विधियों के अंतर्गत नियम बना सकता है। संविधान के अंतर्गत बने इन सभी अधिनियमों, नियमों व विनियमों के संग्रह को हम कानून कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह कानून का पालन करे। यदि कोई कानून का पालन नहीं करके उसका उल्लंघन करता है उसका यह कृत्य दंडनीय अपराध हो या ऐसा दुकृत्य हो सकता है जिससे किसी दूसरे व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक या सांपत्तिक क्षति पहुंचे। दुष्कृत्य करने वाले व्यक्ति से अर्थदंड या क्षतिपूर्ति की मांग की जा सकती है या दंडित किए जाने के लिए उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध हुए अपराध की शिकायत की जिम्मेदारी
यदि कोई व्यक्ति आपके शरीर या सम्पत्ति के विरुद्ध किसी प्रकार का अपराध करता है तो उसकी सूचना तुरन्त निकटतम पुलिस थाने में देना आपकी जिम्मेदारी है। आपकी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का होना प्रकट होता है तो पुलिस उस पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी। यदि पुलिस थाना आपकी रिपोर्ट दर्ज नहीं करे या उचित कार्यवाही नहीं करे तो संबंधित पुलिस अधीक्षक को स्वयं उपस्थित होकर या रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजकर शिकायत करनी चाहिए। यदि पुलिस कार्यवाही से सन्तुष्टि न हो या अन्य कोई परेशानी हो तो सीधे मजिस्ट्रेट की अदालत में परिवाद पत्र पेश किया जा सकता है।
स्त्रियों से संबंधित जिम्मेदारियों के उल्लंघन के अपराध
किसी पुरुष द्वारा किसी स्त्री को उसकी विधिपूर्वक विवाहित पत्नी होने का विश्वास दिला कर उसके साथ सहवास करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा ४९३ के अंतर्गत १० वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है।
किसी पुरुष या स्त्री द्वारा अपने जीवनसाथी के जीवनकाल में दूसरा विवाह करना भा‧दं‧सं‧ की धारा ४९४ के अंतर्गत ७ वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है। यदि ऐसा पहले विवाह को छुपाकर किया जाता है तो धारा ४९५ के अंतर्गत दस वर्ष के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है।
किसी व्यक्ति द्वारा फर्जी तौर पर समारोह करके गैर कानूनी विवाह करना भा‧दं‧सं‧ की धारा ४९६ के अंतर्गत ७ वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है।
किसी पुरुष द्वारा किसी विवाहिता के साथ उसके पति की मुखर या मौन सहमति के बिना सहवास करना जो बलात्कार नहीं है, जारता का अपराध है जो भा‧दं‧सं‧ की धारा ४९७ के अंतर्गत ५ वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है। इस अपराध में विवाहिता की सहमति होना दंडनीय नहीं है।
किसी व्यक्ति द्वारा किसी विवाहित महिला को ललचा कर उसे अवैध सहवास के लिए ले जाना या कहीं छुपा कर रखना भा‧दं‧सं‧ की धारा ४९८ के अंतर्गत २ वर्ष तक के कारावास और जुर्माने से दंडनीय अपराध है।
किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा मानसिक या शारीरिक क्रूरता का व्यवहार करना भारतीय दंड संहिता की धारा ४९८(ए) के अन्तर्गत अपराध है जो तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने से दण्डनीय है।
प्रत्येक पुरुष की जिम्मेदारी है कि वह उसकी पत्नी का भरण पोषण करते हुए उसके साथ दाम्पत्य का निर्वाह करे। यदि कोई पुरुष बिना किसी उचित कारण के पत्नी को त्याग दे या भरण पोषण करने में उसकी उपेक्षा करे या उसके व्यवहार के कारण पत्नी का जीवन कष्टप्रद होने या किसी उचित कारण से पति के साथ निवास करना संभव नहीं होने पर पत्नी पति से अलग रहकर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के अंतर्गत भरण पोषण हेतु नियमित राशि प्राप्त करने आवेदन कर सकती है।
कामकाजी स्त्रियों के प्रति नियोजकों की जिम्मेदारियां
सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा केस में नियोजन के स्थान पर स्त्रियों का यौन शोषण होने से रोकने के लिए उनके नियोजकों को जिम्मेदारियां सौंपी हैं जो इस प्रकार हैं : (१) हर ऐसी कंपनी या संस्थान के हर उस कार्यालय में, जहां १० या उससे ज्यादा कर्मचारी हैं, एक अंदरूनी शिकायत समिति (इन्टर्नल कम्प्लेन्ट्स कमेटी या आईसीसी) गठित करना अनिवार्य है। (२) आईसीसी की अध्यक्ष स्त्री होगी और कमेटी में स्त्रियों का बहुमत होना आवश्यक है। इस कमेटी में यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रही किसी बाहरी गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) की एक प्रतिनिधि रखा जाना अनिवार्य है। (३) कंपनी या संस्थान में काम करनेवाली स्त्रियां किसी भी तरह की यौन हिंसा की शिकायत आईसीसी से कर सकती हैं। कंपनी अथवा संस्थान का उत्तरदायित्व है कि शिकायतकर्ता स्त्री पर किसी भी तरह का हमला न हो, या उस पर कोई दबाव न डाला जाए। (४) कमेटी को एक साल में उसके पास आई शिकायतों और की गई कार्रवाई का लेखाजोखा सरकार को रिपोर्ट के रूप में भेजना होगा। अगर कमेटी किसी को दोषी पाती है, तो उसके खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्जा कराने के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करनी होगी।
पति-पत्नी की एक दूसरे के प्रति कानूनी जिम्मेदारियां
घरेलू हिंसा : किसी व्यक्ति के साथ कोई भी स्त्री घरेलू संबंधों में रहती है तो उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह उसके साथ किसी तरह की घरेलू हिंसा कारित न करे। स्त्री के साथ घरेलू हिंसा कारित होने पर वह घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा १२ के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को आवेदन कर उस व्यक्ति द्वारा घरेलू हिंसा करने, करने के लिए उकसाने या मदद करने के प्रति, स्त्री के नियोजन वाले स्थान के निकट जाने, उससे किसी प्रकार का वैयक्तिक,मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रोनिक या दूरभाषिक संपर्क रखने, मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना संयुक्त बैंक खातों को ऑपरेट करने, संयुक्त संपत्ति के संबंध में, स्वयं तथा रिश्तेदारों, मित्रों के द्वारा हिंसा कारित कराने के लिए निषिद्ध करने; पृथक आवास की व्यवस्था करने; स्त्री धन लौटाने; भरण पोषण हेतु राशि प्राप्त करने; अवयस्क सन्तानों की अभिरक्षा प्राप्त करने तथा हर्जाना प्राप्त करने की आज्ञा प्राप्त कर सकती है।
विवाह विच्छेद : किसी पक्ष द्वारा दाम्पत्य शान्तिपूर्ण रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किए जाने पर हिन्दू पति या पत्नी निम्न कारणों से विवाह-विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं (१) विवाहोपरान्त जीवनसाथी ने किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छा से यौनिक सहवास किया हो; (२) जीवनसाथी का व्यवहार क्रूरतापूर्ण हो; (३) जीवनसाथी को दो वर्षों से छोड़ रखा हो; (४) जीवनसाथी ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो; (५) जीवनसाथी मानसिक रोगी हो; (६) जीवनसाथी संसार का परित्याग कर संन्यासी हो गया हो; (७) जीवनसाथी ७ वर्षों या इससे अधिक समय से लापता हो। सामंजस्य न रहने पर पति-पत्नी आपसी सहमति से भी विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए आवेदन कर सकते हैं।
बाल-विवाह संबंधी जिम्मेदारी
बच्चों के माता-पिता, संरक्षक, वयस्क दूल्हे, पण्डित, मौलवी अथवा विवाह कराने वाले अन्य व्यक्तियों की जिम्मेदारी है कि वे २१ वर्ष से कम उम्र के युवक एवं १८ वर्ष से कम उम्र की युवती का विवाह नहीं होने दें। इस कानून का उल्लंघन करने पर उक्त सभी को दंडित किया जा सकता है।
दहेज संबंधी जिम्मेदारी
किसी विवाह के संबंध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दहेज मांगना, देना या लेना अपराध है। दोषी व्यक्ति को दो वर्ष तक के कारावास तथा दस हजार रुपये या दिए गए दहेज के मूल्य की राशि तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। विवाह के अवसर पर वर या वधू को दिये जाने वाले उपहारों की लिखित सूची रखी जाना जरूरी है। इस सूची में उपहार देने वाले व्यक्ति का नाम, उससे संबंध और उपहार का मूल्य भी लिखा जाना चाहिए। ऐसी सूची नहीं बनाए जाने पर उपहार देने व लेने वाले व्यक्ति को दंडित किया जा सकता है। स्त्री को प्राप्त उपहार उसका स्त्री-धन माना जाएगा जो उसकी निजी संपत्ति होगी।
मकान मालिक व किरायेदार की जिम्मेदारी
मकान-दुकान किराए पर देते समय रेंट एग्रीमेंट लिखना सदैव उचित रहता है। किराएदार को किराया प्रत्येक माह समय से अदा करना चाहिए और उसकी रसीद प्राप्त करना चाहिए। रसीद के अभाव में किराया अदा होना नहीं माना जाएगा। मकान मालिक की जिम्मेदारी है कि वह किराएदार की आवश्यक सुविधाओं को बनाए रखे।
चेक संबंधी जिम्मेदारी
कोई व्यक्ति किसी दायित्व का भुगतान करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को चेक देता है तो उसकी जिम्मेदारी है कि चेक समाशोधन के लिए प्रस्तुत होने पर उसके भुगतान के लिए अपने बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि रखे। यदि बैंक द्वारा उसका चेक बिना भुगतान के अनादरित होकर लौटा दिया जाता है तो चैक देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध सक्षम न्यायालय में धारा १३८ निगोशिबल इन्स्ट्रमेन्ट एक्ट के अंतर्गत अपराधिक परिवाद प्रस्तुत कर कार्यवाही की जा सकती है। जिसमें उसे चेक की राशि से दुगनी धनराशि तक का जुर्माना और छह माह तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है। चैक से भुगतान करने वाले व्यक्ति को उसका चेक अनादरित होने की सूचना प्राप्त होने के १५ दिनों में वह चेक की राशि का भुगतान चैक प्राप्त करने वाले को करके मूल अनादरित चेक व भुपगतान की रसीद प्राप्त कर लेता है तो फिर यह कार्यवाही नहीं होगी।
निःशुल्क कानूनी सहायता
किसी व्यक्ति की वार्षिक आय २५,००० रु‧ से कम हो तो वह निःशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। अनुसूचित जाति या जनजाति तथा १६ वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति उनकी वार्षिक आय २५,००० रु‧ से अधिक होने पर भी निःशुल्क कानूनी सहायता पाने के अधिकारी हैं। यह सहायता पाने के लिए एक आवेदन-पत्र हर न्यायालय से निःशुल्क प्राप्त किया जा सकता है। स्त्रियां अपने वैवाहिक विवादों से संबंधित प्रकरणों में अथवा अपहरण, बलात्कार आदि प्रताड़ना वाले मामलों में निःशुल्क कानूनी सहायता पाने की हकदार है।
किसी भी व्यक्ति को कोई भी कानूनी समस्या होने पर वह इस लेखक की वेबसाइट https://teesarakhamba.com/ Ò‘कानूनी सलाह’ मेनू पर क्लिक करने पर खुलने वाले फार्म में अपनी समस्या रखते हुए निःशुल्क समाधान प्राप्त कर सकता है।
अधिक हिंदी ब्लॉग पढ़ने के लिए, हमारे ब्लॉग अनुभाग पर जाएँ।
दिनेशराय द्विवेदी