सर्वव्यापी महामारी कोरोना के दौरान और उसके पार
कोविड-१९ महामारी जिसकी शुरुआत हुई थी वर्ष २०१९ में चीन के वुहान शहर में एक आउटब्रेक के रूप में, देखते ही देखते विश्व भर में तेजी से फैलने लगा और ११ मार्च २०२० को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इसे एक वैश्विक महामारी घोषित कर दिया। संक्रमण की लहर दुनिया के तमाम देशों से गुजरते हुए भारत की दहलीज पर भी आ खड़ी हुई। हम भी इससे अछूते न रह सके और वर्ष २०२० के शुरुआती महीनों में ही कोरोना संक्रमण के मामले देश में तेजी से सामने आने लगे। कोरोना संक्रमित मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए भारत सरकार ने देश भर के सभी राज्यों में २४ मार्च २०२० को लॉकडाउन घोषित कर दिया, ताकि लोग अपने घरों में सुरक्षित रह सकें। भागती दौड़ती जिंदगी की तेज रफ्तार पर मानो एकाएक ब्रेक सा लग गया। जो जहां कहीं भी था बस वहीं ठहर गया। जहां बहुत सारे स्टूडेंट्स अपने कॉलेज हॉस्टल्स में फंस गये थे तो, वहीं नौकरी पेशा युवा और प्रवासी मजदूर अपने घरों से दूर दूसरे शहरों में। बाकी बची हुई जनता अपने घरों में दुबक गई।
आम जनता के लिए कोरोना वायरस और लॉकडाउन दोनों ही नए विषय थे इसीलिए न्यूज चैनलों से लेकर वॉट्सएप ग्रुप तक की चर्चाओं का केन्द्र बने हुए थे। कोरोना वायरस के बारे में लोग तरह तरह की खबरें एक दूसरे के साथ साझा करते जैसे कोरोना वायरस कहां से आया है?, कैसा दिखता है?, हमारे शरीर में पहुंचकर वह कैसे हानि पहुंचा सकता है?, संक्रमण से बचने के तमाम घरेलू नुस्खे आदि। इनमें से कुछ खबरें सच होती तो कुछ मात्र अफवाह। खैर, लॉकडाउन के शुरुआती दिनों का लुत्फ तो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी ने खूब जमकर उठाया। लम्बे समय के बाद दफ्तर की तनाव और ऊहापोह भरी दिनचर्या से निकलकर मिले सुकून भरे दिन आराम फरमाने, परिवार के साथ समय बिताने, गपशप करने, नए नए पकवान बनाकर उसका आनंद लेने ओर सोशल मीडिया को उलटते-पुलटते बीतने लगे। बच्चों ने भी सिर से किताबों का बोझ परे रख मोबाइल के साथ समय बिताना शुरु कर दिया। स्कूल क्लास रुम की जगह अब लूडो रूम ने ले ली थी। घर के बुजुर्गों के तो मानो अच्छे दिन आ गए हों। घर में इतनी चहल पहल ने उनके अकेलेपन को कहीं दूर ही धकेल दिया था। सरकार ने भी घर बैठे लोगों के मनोरंजन का ध्यान रखा और दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रमों का पुनः प्रसारण किया गया।
आम तौर पर जब भी कोई प्राकृतिक संकट आता है, तो कुछ देश अथवा राज्यों तक ही सीमित रहता है लेकिन इस बार बात अलग थी, संकट बडा ़भी था और गंभीर भी। संक्रमण तेजी से फैल रहा था, जिसने लगभग विश्व भर की पूरी मानव जाति को शारीरिक अथवा तो मानसिक रुप से झकझोरना शुरु कर दिया था। घरों में बैठे लोगों का धैर्य भी अब धीरे-धीरे टूटने लगा। कामकाजी लोग बिना काम घर बैठने के चलते ऊबने लगे थे तो वहीं गृहिणियां काम के बोझ से परेशान थीं। माता पिता पढाई़ को लेकर चिंतित थे। बच्चे भी घर की चारदीवारी से बाहर निकल फिर से पंख फैलाकर उन्मुक्त गगन में उड़ने को मचल रहे थे। लम्बे समय से आमदनी बंद होने के कारण कुछ घरों की गाड़ी तो आर्थिक तंगी के चलते अटकने लगी थी। घरों के साथ साथ देश की भी आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। देश पर आर्थिक संकट मंडराने लगा। बड़े बड़े उद्योग ठप पड़ गए। कई लोगों के रोजगार छिन गए। युवाओं को अपने घरों को लौटना पडा।़ गरीब और मजदूर परिवार भी भूख की मार सहन न कर सके और अंत में हारकर शहर छोड़ अपने गांवों को पलायन कर गए।
कोरोना ने हमें निराशा रूपी घने बादलों के बीच यूं ला खडा ़किया था कि जहां से उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं देती थी। लोग अपनी जिंदगी के लिए लड़ रहे थे। उनके परिवार वाले डर और अकेलेपन से जूझ रहे थे। कोरोना को लेकर कुछ ऐसी अफवाहें फैल रहीं थीं कि जिससे लोगों में डर और भी बढ़ रहा था। यही कारण था कि डब्ल्यू‧एच‧ओ‧ ने इसे पेंडेमिक के साथ साथ इन्फोडेमिक की संज्ञा भी दी है। इन्फोडेमिक शब्द ‘इन्फॉरमेशन’ और ‘एपिडेमिक’ शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ ‘लोगों के बीच महामारी के बारे में गलत सूचना का प्रसार’ है। परिस्थितियों पर से छूटता हुआ नियंत्रण लोगों को अवसाद की ओर धकेलने लगा। २०२० भी एक ऐसा ही वर्ष साबित हुआ जिसने हमें फिर एक बार नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया।
टेक्नोलॉजी जिसका उपयोग अब तक सिर्फ अपनी सुख सुविधाओं के साधनों तक ही सीमित रखा था आज उसी टेक्नोलॉजी का उपयोग काम को गति देने की दिशा में किया गया। इस तरह वर्क फ्रॉम होम का विचार सामने आया। घर बैठे कम्प्यूटर और लैपटॉप से ऑनलाइन काम की पहल हुई। ऑफिस मीटिंग्स जूम मीटिंग्स में बदल गयीं। कक्षाओं को सुचारु रूप से चलाया जा सके इसके लिए भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की सहायता ली गयी।
घर बैठे काम करने का अनुभव बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के लिए नया था। इसमें कुछ असुविधाएं भी थी। ‘वर्क फ्रॉम होम’ एक आरामदायक घरेलू वातावरण उपलब्ध कराता है वहीं दफ्तर आने-जाने में लगने वाला समय भी बचाता है। ये समय हम परिवार को दे सकते हैं पर लम्बे समय तक स्क्रीन के सामने बैठने से न सिर्फ आंखें प्रभावित होती हैं बल्कि थकान, सरदर्द और चिड़चिडाप़न महसूस होता है। एक ही स्थिति में देर तक बैठने के कारण गर्दन, कंधे और जोड़ों में दर्द जैसी शिकायत भी लोगों में देखने मिल रही हैं। इन समस्याओं से बचने के लिये जरूरी है कि रोज व्यायाम किया जाये, हल्का और पौष्टिक भोजन लें। काम के बीच में फल और जल दोनों का सेवन करें। इससे आपको जल्द थकान नहीं महसूस होगी। बीच बीच में ब्रेक लें और थोडा ़चहलकदमी कर लें। कुछ वक्त कुदरत के साथ बिताएं।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि वर्तमान परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं,
जीवन में एकाएक आई अनिश्चितता लोगों में चिंता और तनाव को जन्म दे रही है। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे परिवर्तन हुए है। सामान्यतः लोगों के लिए परिवर्तन को स्वीकार करना सरल नहीं होता और इसलिए हम भविष्य को लेकर चिंता महसूस करते हैं। जरूरी है कि हम तनाव से बचने के लिए खुद में लचीलापन लेकर आयें और नयी संभावनाओं को तलाशें।
हम सभी अपनी और अपनों की खुशी के लिए दिन रात कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन खुशियों के मायने आधुनिक जगत में सिर्फ सुख-सुविधा जुटाने तक ही सीमित रह गए हैं। इसलिए जिस परिवार की खुशी के लिए हम इतनी मेहनत करते हैं उसके साथ दो पल बिताने का समय भी हमारे पास नहीं होता। कुछ लोग इस बारे में सोचते हैं और कुछ के पास सोचने का समय भी नहीं। कोरोना ने हमें परिवार के साथ वक्त बिताने का भरपूर अवसर दिया। कोरोना के बुरे वक्त में साथ खड़े परिजनों की कीमत हमें समझ आई। लम्बे समय तक मिले एकांत ने हमें भीतर छिपी क्रिएटिविटी को निखारने का मौका दिया। कई लोगों ने घर बैठे अपने हुनर और क्षमताओं को उन्नत बनाने और नया सीखने के लिए ऑनलाइन कोर्सेस का सहारा लिया। लॉकडाउन में बच्चों और प्रोफेशनल्स सबने ऑनलाइन कोर्सेज का फायदा उठाया। शिक्षा क्षेत्र में कई बड़े परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। स्कूल कॉलेज बंद होने की स्थिति में ऑनलाइन क्लासेज मॉडल काफी लाभप्रद साबित हुआ। ऑनलाइन पढाई़ के इस महत्व को देखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू‧जी‧सी‧) ने देश के ३८ विश्वविद्यालयों को कुल १७१ डिग्री प्रोग्राम चलाने की मंजूरी दी है। ऑनलाइन कोर्स का एक बडा ़फायदा यह है कि इसे वर्किंग प्रोफेशनल्स भी अपने काम के साथ साथ इसका लाभ उठा सकते हैं।
कोरोना हो या जिंदगी की मुश्किलें, आप नकारात्मक होने की बजाय संभावनाओं और अवसरों को पहचानकर फायदा उठाएं। अपनी क्रिएटिविटी और कला को निखारें। सकारात्मक सोच हर मुश्किल को आसान बना देती है। खाली समय का सदुपयोग करें। अपनों के साथ समय बिताएं। कुछ नया सीखने की कोशिश करें। रसोई में जाकर कुछ नया व्यंजन बनाने हो या यूट्यूब ट्यूटोरियल्स के जरिये डांस और म्यूजिक सीखना। किताबें पढ़ना हो या फिर ऑडियो-बुक के जरिए उन्हें सुनना या मेडीटेशन करना ये सब शुरू करना संभव है।
जीवन प्रवाहमय है इसके साथ हमें परिवर्तन को स्वीकार करना होगा। हर बुरी परिस्थिति कुछ अच्छा लाती है। कोरोना एक बुरा दौर है लेकिन अगर हमसकारात्मक सोचें तो इसी दौर में सुधार की शुरुआत हुई। जीवन को देखने के नजरिए में बड़ा बदलाव आया। जो लोग जीवन में धन को अधिक महत्व देते थे उन्होंने इस कठिन समय में रिश्तों की कीमत को समझा। लोग धर्म, जाति से ऊपर उठकर मदद के लिये सामने आये। जीवन शैली में भी बदलाव हुए। हम आस पास साफ सफाई रखने लगे हैं। स्वास्थ्य और विशेषतः रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाऩे को लेकर अधिक जागरूक हुए हैं। सरकार द्वारा भी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की ओर महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। जो लोग समय के अनुकूल होने की प्रतीक्षा में रहते हैं वे जीवन के हर पडाव़ में कहीं न कहीं स्वयं को निराशाओं में जकडा ़हुआ पाएंगे। किंतु जो लोग अभाव में भी नये अवसरों को पहचानते हैं, वो अपनी सफलताओं के लिये वक्त के मोहताज नहीं होते।
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निष्ठा भारद्वाज