महिला क्रिकेट: सफलता के बावजूद सुर्खियों से दूर | ओम प्रकाश | Womens Cricket: Despite success, away from the limelight | Om Prakash

Published by ओम प्रकाश on   March 2, 2022 in   Hindi

महिला क्रिकेट: सफलता के बावजूद सुर्खियों से दूर

अगर यह सवाल पूछा जाए कि मर्टल मैकलागन (Myrtle Maclagan) कौन थीं? तो हम में से बहुत कम लोग उनके बारे में जानते होंगे। दरअसल इसमें हमारा दोष नहीं हमारी मानसिकता और सोच का दोष है। इसी वजह से मैकलागन जैसी न जाने कितनी नायिकाओं को हमने विस्मृत कर दिया। दरअसल मैकलागन के नाम महिला टेस्ट क्रिकेट में वही रिकॉर्ड दर्ज है जिसे पुरुष टेस्ट क्रिकेट में कई दशक पहले चार्ल्स बेनरमैन ने बनाया था। बेनरमैन को टेस्ट क्रिकेट में पहला शतक लगाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने यह कीर्तिमान १५ मार्च १८७७ को  मेलबर्न में इंग्लैंड के विरुद्ध खेले गए टेस्ट में बनाया था।

करीब ५७ साल बाद महिला टेस्ट क्रिकेट की शुरूआत हुई। पहला मुकाबला २८ दिसंबर १९३४ को इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच ब्रिसबेन में हुआ। इस मैच में इंग्लैंड की मैकलागन शतक पूरा नहीं कर पाईं और ७२ रन बनाकर आउट हुईं। यह उस टेस्ट मैच की दोनों पारियों किसी महिला बल्लेबाज के द्वारा बनाया गया सर्वोच्च स्कोर था। इसके बाद दोनों टीमों के दरम्यान दूसरा टेस्ट ४ जनवरी १९३५ को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर शुरू हुआ। यह वही टेस्ट था जिसमें इंग्लैंड की बल्लेबाज मैकलागन ने इतिहास रचते हुए ११९ रन बनाए। इस तरह महिला टेस्ट क्रिकेट में पहला शतक लगाने का कीर्तिमान उन्होंने बनाया।

फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला क्रिकेट को कभी तवज्जो नहीं दी गई। इतिहास गवाह है कि पुरुषों के मुकाबले यह गैर बराबरी आज भी मौजूद है। इसके बावजूद इंटरनेशनल क्रिकेट में महिलाओं ने हमेशा हुनर दिखाया। बात चाहे बल्लेबाजी की हो या गेंदबाजी की मौजूदा समय में ऐसी कई खिलाड़ी हैं जो अपनी पहचान अलग बनाने में सफल रहीं।

एक वक्त ऐसा था जब कोई भी लड़की क्रिकेट खेलने के बात करती थी तो उसके पास-पड़ोस वाले उसका मजाक बनाते। अक्सर ताना मारा जाता कि लड़कियां क्रिकेटर नहीं बन सकतीं। कुल मिलाकर उन्हें हमेशा कमतर आंका गया और दरकिनार करने की कोशिश की गई। भारत में तो स्थिति और बदतर थी। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी ने क्या-क्या परेशानियां नहीं झेलीं। शुरुआती दिनों में उन्हें लड़कों के साथ क्रिकेट खेलना पडा।़ लड़के अक्सर उनका इस बात को लेकर मजाक बनाते कि वह बहुत धीमी गेंद फेंकती हैं। यही बात झूलन को चुभ गई।

कहते हैं कि इरादा पक्का हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। जिस झूलन ने शुरुआती दिनों में धीमी गेंदबाजी करने के लिए ताने सहे उन्हें बाद में दुनिया की सबसे तेज गेंदबाजों में शुमार किया गया। उनकी १२० किमी रफ्तार की गेंदें विपक्षी बल्लेबाजों की स्टंप उखाड़ने के लिए काफी थीं। क्रिकेट मैदान पर झूलन बीते १९ वर्षों से अपनी गेंदबाजी का कहर बरपा रहीं। आज एकदिवसीय महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड उनके नाम है। झूलन वनडे क्रिकेट में २३६ विकेट ले चुकीं है। वर्तमान समय में उनके इस रिकॉर्ड के आसपास दुनिया की कोई भी महिला गेंदबाज नहीं है। वनडे में अगर सक्रिय महिला गेंदबाजों की बात की जाए तो वेस्टइंडीज की अनीसा मोहम्मद ने १६३, इंग्लैंड की कैथरीन ब्रंट १५५ और ऑस्ट्रेलिया की एलियस पैरी १५२ विकेट लेकर झूलन से काफी पीछे हैं।

ऐसी ही मिताली राज को भी शुरुआती दिनों में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पडा जिन दिनों मिताली क्रिकेटर बनने के लिए पुरुष क्रिकेटरों के साथ नेट पर अभ्यास करतीं यह बात उनके दादा-दादी को बिलकुल पसंद नहीं थी। उनका कहना था कि क्रिकेट लड़कियों   का खेल नहीं हैं और वह नहीं चाहते हैं कि मिताली क्रिकेट खेले। लेकिन मिताली ठान चुकी थीं कि वह क्रिकेटर ही बनेंगी। इसके बाद उन्होंने कोच संपत कुमार की देखरेख में क्रिकेट खेलना शुरू किया। उनके उनकी लगन और प्रतिभा से काफी प्रभावित थे। उन्हें भरोसा था कि मिताली एक दिन बेहतरीन क्रिकेटर बनेगी और विश्व पटल पर भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। आखिर उन्होंने जो सोचा था वह सच साबित हुआ।

२६ जून १९९९ को आखिर वह दिन आ गया जब मिताली ने १७ साल की उम्र में आयरलैंड खिलाफ वनडे में डेब्यू किया। कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मिताली के साथ भी हुआ। अपने इस डेब्यू वनडे में मिताली ने पारी की शुरुआत करते हुए नाबाद ११४ रनों की पारी खेली। मजेदार बात यह थी कि मिताली के साथ पारी का आगाज करने उतरीं रेशमा गांधी ने भी नॉट आउट १०४ रन बनाए। यानी भारत ने इस मुकाबले में बिना कोई विकेट खोए २५८ रन बनाए। इसके बाद आयरलैंड की महिला टीम निर्धारित ५० ओवर में ९ विकेट पर सिर्फ  ९७ रन बना पाई। भारत ने यह मुकाबला १६१ रनों से जीता। इस तरह मिताली राज ने जीत के साथ वनडे में आगाज किया।

मिताली और सचिन में एक बात समान है। सचिन तेंदुलकर ने जब अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की तो उस समय उनकी उम्र १६ साल २०५ दिन थी। इसी तरह जब मिताली ने इंटरनेशनल क्रिकेट में आगाज किया तो उनकी उम्र भी १६ साल २०५ दिन थी। आज जहां सचिन तेंदुलकर के नाम वनडे में सबसे ज्यादा (१८४२६) रन बनाने का रिकॉर्ड दर्ज है तो वहीं महिला एकदिवसीय में मिताली ने सबसे ज्यादा ७३०४ रन बनाए हैं। उनके इस रिकॉर्ड से दुनिया की दीगर महिला बल्लेबाज कोसों दूर हैं। इतना ही नहीं मिताली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में १० हजार रन बनाने वाली दुनिया की दूसरी महिला बल्लेबाज हैं। मौजूदा समय में आईसीसी की महिला एकदिवसीय रैंकिंग में वह शीर्ष स्थान पर कायम हैं। मिताली ने अपने वनडे क्रिकेट करियर में यह नौवीं बार उपलब्धि हासिल की है।

दुनिया भर में ऐसी कई महिला क्रिकेटर हैं जो पुरुषों की तरह क्रिकेट हर फॉर्मेट में धमाल मचा रही हैं। मिताली राज, लिजले ली, एलिसा हीली, टैमी ब्यूमोंट (Tammy Beaumont) स्टेफनी टेलर, शेफाली वर्मा, बेथ मूनी (Beth Mooney) स्मृति मंधाना, हरमनप्रीत कौर, मेग लैनिंग, एलियस पैरी, जेस जोनासेन, मेगन शूट (Megan Schutt) मारिजाने काप (Marizanne Kapp) शबनीम इस्माइल, झूलन गोस्वामी, सोफी एक्लेस्टोन (Sophie Ecclestone) और सारा ग्लेन (Sarah Glenn)जैसी खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से काफी प्रभावित किया है।

यह बात स्पष्ट है कि पूरे विश्व में महिला क्रिकेट को पुरुष क्रिकेट के बराबर कभी वरीयता नहीं दी गई। विश्व कप फाइनल जैसे बड़े मुकाबलों को अगर छोड़ दिया जाए तो आज भी महिलाओं को दोएम दर्ज के मैदानों पर क्रिकेट खेलना पड़ता है। लॉर्ड्स क्रिकेट के मक्का के रूप में विख्यात है लेकिन जानकर ताज्जुब होगा कि इस मैदान पर आज तक कोई भी महिलाओं का टेस्ट मैच नहीं खेला गया। इंग्लैंड की महिला टीम ने सर्वाधिक ९६ टेस्ट खेले हैं लेकिन उसे लॉर्डस पर पहले टेस्ट मैच का इंतजार है। १९३४ से लेकर जून २०२१ तक जो महिला टीमों ने १४१ टेस्ट खेले गए हैं उनमें से सबसे ज्यादा ९ मुकाबले वॉरसेस्टर के न्यू रोड क्रिकेट मैदान पर हुए हैं। इसके बाद लंदन के द ओवल क्रिकेट ग्राउंड का नंबर आता है जहां अब तक ६ टेस्ट मैचों का आयोजन किया गया है। यही हाल महिलाओं का वनडे और टी-२० में भी है जिन्हें खेलने के लिए नियमित क्रिकेट मैदान आबंटित नहीं किया जाते हैं।

इस गैरबराबरी को इस तरह समझा जा सकता है कि ५ जनवरी १९३४ से लेकर ८ अगस्त २०२१ आलेख लिखे जाने तक दुनिया भर की पुरुष टीमें २१९८ टेस्ट मैच खेले चुकी हैं। इस मामले में महिला टेस्ट टीमें बहुत पीछे हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो दिसंबर १९३४ से लेकर १६ जून २०२१ तक विभिन्न महिला टीमों के बीच सिर्फ १४१ टेस्ट मैच खेले गए हैं। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, भारत, आयरलैंड, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और वेस्टइंडीज कुल मिलाकर १० महिला टीमों को टेस्ट का दर्जा प्राप्त है। जबकि १२ पुरुष टीमें टेस्ट मैच खेलती हैं।

इसके अलावा ५ जनवरी १९७१ को पहला वनडे मैच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की पुरुष टीमों के बीच खेला गया वहीं २३ जुलाई २०२१ तक कुल ४३१२ एकदिवसीय मैच खेले जा चुके हैं। जबकि २३ जून १९७३ को ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की महिला टीमों के बीच पहला एकदिवसीय मैच खेला गया। वहीं, १८ जुलाई २०२१ तक कुल महिला टीमों ने १२०५ वनडे खेले हैं। १९७३ में जब महिलाओं का पहला वनडे मैच खेला गया तो उस समय तक पुरुष टीमों ने सिर्फ  ९ एकदिवसीय मुकाबले खेले थे।

इसी तरह पहला टी-२० अंतरराष्ट्रीय मैच ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की पुरुष टीमों के बीच १७ फरवरी २००५ को खेला गया। ८ अगस्त २०२१ तक सभी टीमों ने १२२१ हैं। वहीं न्यूजीलैंड और इंग्लैंड महिला टीमों के दरम्यान पहला टी-२० इंटरनेशनल मुकाबला ५ अगस्त २००४ को खेला गया। वहीं ३० जुलाई २०२१ तक सभी महिला टीमों के बीच ९२३ टी-२० अंतरराष्ट्रीय मैच खेले गए हैं। कुल मिलाकर महिलाएं यहां भी पीछे हैं।

इसके अलावा मैच फीस की बात की जाए तो महिलाओं को पुरुष क्रिकेटरों के मुकाबले काफी कम पैसे मिलते हैं। भारत में जहां पुरुषों की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में ग्रेड ए प्लस के तहत ७ करोड़, ग्रेड ए ५ करोड़, ग्रेड बी ३ करोड़ और ग्रेड सी के तहत शामिल पुरुष क्रिकेटरों को १ करोड़ रुपये बीसीसीआई की तरफ से दिए जाते हैं। वहीं महिलाओं को ग्रेड ए के तहत ५० लाख, ग्रेड बी ३० लाख और ग्रेड सी में शामिल महिलाओं को १० लाख रुपये सालाना दिए जाते हैं। कमोबेश दुनिया की दूसरी महिला टीमों का भी यही हाल है।

क्रिकेट मैदान पर भी यह असमानता बरकरार है। जब पुरुषों टीमों के बीच कोई अंतरराष्ट्रीय मैच खेला जाता है तो उस समय भारी संख्या में दर्शक मैदान पर पहुंचते हैं और अपने चहेते क्रिकेटरों का हौसलाअफजाई करते हैं। दूसरी तरफ जब महिलाओं के बीच कोई इंटरनेशनल मैच खेला जाता है तो स्टैंड से यही भीड़ नदारद रहती है। इसके अलावा महिला क्रिकेटरों के स्पॉन्सर्स पुरुषों के मुकाबले काफी कम हैं। विज्ञापन की दुनिया में भी यही हाल है। पुरुष क्रि‧केटर जहां एक के बाद एक दर्जनों विज्ञापनों में नजर आते हैं वहीं महिला क्रिकेटर किसी चीज का प्रचार-प्रसार करते यदा-कदा ही दिखाई देती हैं।

इस असमानता के बावजूद विश्व की कई महिला क्रि‧केटरों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। वह बल्लेबाजी और गेंदबाजी में कहीं किसी से कम नहीं हैं। महिलाएं यह प्रदर्शन ऐसे वक्त में कर रही हैं जब उन्हें नियमित क्रिकेट मैदानों पर खेलने नहीं दिया जाता है। उनकी मैच फीस कम है, पुरुष क्रिकेटरों के मुकाबले स्पॉन्सर्स नहीं हैं। इसके बावजूद पूरी दुनिया की महिला क्रिकेटर अपनी मेहनत और लगन की वजह से आगे बढ़ रही हैं। उनके जोरदार प्रदर्शन से यह एहसास हो रहा है कि आने वाला समय उनका है। काश कितना अच्छा होता महिलाओं को भी क्रिकेट के नियमित मैदानों पर हमेशा खेलने को मिलता, मैच फीस में समानता होती और उन्हें भी स्पॉन्सर्स, विज्ञापन मिलते और लोग भारी तदाद में मैदान पर उनके मैच देखने जाते।

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ओम प्रकाश