आइये, समझें सोलो – परफॉर्मेंस !
थिएटर हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। उसी तरह सोलो थिएटर हमारे थिएटर जीवन का एक अहम भाग। वैसे हम हर समय अभिनय करते हैं, क्योंकि जीवन के हर पल हम किसी न किसी भूमिका में रहते हैं। कभी आप बॉस बनकर किसी को डांट रहे हैं। दूसरे पल आपका बॉस आपको डांट रहा है। सोलो परफॉर्मेंस यही है। एक अकेला व्यक्ति मंच पर है और उसे स्क्रिप्ट के अनुसार सभी चरित्रों को प्ले करना है।
एक प्रश्न रंगकर्मियों की तरफ से आता है कि एकल नाटक रंगकर्म के समूह कार्य की अवधारणा को खंडित करता है। बेशक मंच पर एक ही कलाकार होता है, लेकिन सोलो परफॉर्मेंस भी एक समूह की गतिविधि है। ग्रुप नाटकों की तरह ही सोलो परफॉर्मेंस के लिए भी एक लेखक स्क्रिप्ट लिखता है, एक स्टेज डिजाइन करता है, एक कॉस्ट्यूम बनाता है, एक प्रॉप्स तैयार करता है, एक संगीत निर्माण करता है, एक शो के समय संगीत संचालन करता है, एक प्रकाश डिजाइन करता है, एक शो के समय प्रकाश संचालित करता है, कम से कम एक व्यक्ति बैक-स्टेज संभालता है, एक निर्देशन करता है। इन सबकी सामूहिक मेहनत को एक कलाकार मंच पर उतारता है। इस तरह से एक कलाकार के साथ कम से कम दस लोग काम करते हैं।
इन बातों के साथ-साथ एक बात और भी बता दूं कि सोलो परफॉर्मेंस प्रोसीनियम और इंटीमेट थिएटर के साथ-साथ रूम थिएटर में सफलतापूर्वक संचालित तो होते ही हैं, अब बदलते समय में डिजिटल थिएटर पर भी इसे पूरी आस्था, विश्वास और कुशलता के साथ निभाया जा सकता है।
सोलो परफॉर्मेंस की अवधारणा के साथ एक नाटक को हम कैसे प्रस्तुत करें?
१. स्क्रिप्ट सोलो परफॉर्मेंस की जान, प्राण और आत्मा है। इसलिए, स्क्रिप्ट का चयन अत्यंत सावधानी से करना आवश्यक है। स्क्रिप्ट कसी हुई हो। कलाकार स्क्रिप्ट को समझे और उस पर काम करे।
२. स्क्रिप्ट छोटी भी हो, ताकि कलाकार को पात्रों और परिस्थितियों के अनुसार एक से दूसरे के ट्रांजीशन में जाने के लिए भरपूर समय मिल सके।
३. स्क्रिप्ट के रूप में आप कहानी का भी चयन कर सकते हैं या किसी प्रचलित नाटक को भी सोलो परफॉर्म किया जा सकता है।
४. सोलो परफॉर्मेंस के लिए यह बेहतर है कि कलाकार अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखे। इससे यह फायदा होता है कि सोलो परफॉर्मर को कहानी अपनी भाषा में मिलती है। वह पात्रों के साथ अपनी आत्मीयता बना पाने में सफल होता है।
५. नाटक की अवधि क्या हो, यह तय किया जाना जरूरी है। मैं अपने लिए कम से कम साठ मिनट की अवधि तय करती हूं, क्योंकि दर्शक अपना समय निकालकर, पैसे खर्च करके आते हैं। उन्हें आधे घंटे का नाटक दिखाकर छुट्टी कर दें तो वह खुद को ठगा हुआ महसूस करेगा।
६. सोलो परफॉर्मेंस में स्टेज डिजाइन, प्रॉप्स, कॉस्ट्यूम का तामझाम जितना कम रखेंगे, सोलो परफॉर्मर उतना सहज रहेगा।
७. सोलो परफॉर्मेंस में ध्यान रखें कि कथ्य पर शिल्प हावी ना हो। चरित्र छोटे हों या बड़े, तीन-चार हों या ज्यादा-उन्हें समझना ज्यादा जरूरी है।
८. इसका यह मतलब नहीं कि सोलो परफॉर्मेंस एकदम फ्लैट हो। सोलो कलाकार को इतना सजग और ऊर्जामय बने रहना होता है कि पल-पल में वह खुद को बदलता रहे।
९. सोलो परफॉर्मेंस में माइम का प्रयोग बहुत होता है, क्योंकि वह मंच पर अकेला है।
१०. कैरक्टराइजेशन सोलो की विशेषता है। तभी कलाकार स्क्रि.प्ट में आए अलग-अलग पात्रों के व्यक्तित्व को समझ पाएगा और फिर उन पात्रों को उनके व्यक्तित्व के अनुसार अभिनीत कर उनके चाल ढाल, संवाद, बोली, फेशियल एक्सप्रेशन, बॉडी लैंग्वेज को विश्वसनीय रूप से प्रस्तुत कर पाएगा।
११. सोलो परफॉर्मेंस की एक बहुत बड़ी खासियत है कि इसमें एक्टिंग नहीं की जाती, बल्कि इसमें जीवन को जिया जाता है।
१२. सोलो परफॉर्मेंस के लिए जुनून थोडा ़ज्यादा चाहिए, क्योंकि सोलो एक्टर की चुनौतियां ज्यादा हैं।
१३. संवाद पर ध्यान देना और चरित्रों के व्यक्तित्व के अनुसार संवादों को बोलना अत्यधिक आवश्यक है।
१४. सोलो परफॉर्मेंस में बदन को विशेष लचीला बनाकर रखना होता है, ताकि वह घड़ी-घड़ी बिजली की गति से अपने अंग संचालन में परिवर्तन ला सके और अपने चेहरे की अभिव्यक्ति को भी स्वर दे सके।
१५. स्वर साधना परफॉर्मेंस की एक अनिवार्य आवश्यकता है। क्योंकि एक ही कलाकार को तमाम चरित्रों को निभाना है तो उसे स्वर की विविधता आनी चाहिए।
१६. सोलो परफॉर्मर को थोडा गायन, नृत्य और वादन आना चाहिए।
१७. सोलो परफॉर्मेंस में आप लोकल से ग्लोबल बन सकते हैं। जिस क्षेत्र के हैं, वहां के खान-पान से लेकर वहां के रीति रिवाज, संगीत, व्रत-त्यौहार, उत्सव आदि की जानकारी आपके सोलो परफॉर्मेंस को बहुत मजबूती प्रदान करती है।
१८. और सबसे महत्वपूर्ण! सोलो परफॉर्मेंस में स्टूडेंटशिप यानी सीखने की प्रवृत्ति हमेशा बनी बहुत जरूरी है, अन्यथा आप खुद को ही दुहराने लगेंगे।
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विभा रानी