छद्म विज्ञान या स्यूडो साइंस तथा ठगी के नए तरीके
आजकल सोशल मीडिया पर सामान्य जनों के बीच सूक्तियां, गुड मॉर्निंग, गुड नाईट के फूल पत्ती वाले पोस्टर, बोध कथाओं, प्रेम अथवा नफरत फैलाने वाले संदेशों के अलावा प्राचीन काल के आख्यानों, परम्पराओं, स्वास्थ्य ठीक रखने के नुस्खों को प्रस्तुत करने का चलन हैं। चूंकि इन दिनों विज्ञान का महत्व है और बिना विज्ञान की सहायता के सुखमय एवं सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती इसलिए ऐसी अनेक बातों को विज्ञान के आवरण में लपेटकर प्रस्तुत किया जाता है और विज्ञान के आधार पर सही सिद्ध करने का प्रयास भी किया जाता है। यह प्रयास ही छद्म विज्ञान कहलाता है।
छद्मविज्ञान या स्यूडोसाइंस यह शब्द उस क्रियाकलाप या विधि के लिए प्रयुक्त होता है जो विधि वैज्ञानिक होने का आभास उत्पन्न करती है किन्तु सम्यक वैज्ञानिक विधि का अनुसरण नहीं करती। सम्यक वैज्ञानिक विधि वह होती है जो कार्य कारण सम्बन्ध पर आधारित होती है एवं जिसके लिए निरंतर प्रयोग किये जाते हैं। टोने-टोटकों, जादू-टोने, भभूत, गंडे तावीज, भस्म या प्रसाद द्वारा मुसीबत दूर करने की विधि सम्यक वैज्ञानिक विधि कतई नहीं होती। छद्मविज्ञानी जैसा शब्द उन लोगों के लिए उपयोग में लाया जाता है जो बिना किसी आधार के किसी भी बात को वैज्ञानिक कह देते हैं।
आइये ऐसे कुछ उदाहरणों के साथ बात करते हैं जिन्हें तर्कसंगत सिद्ध करने हेतु छद्म विज्ञान का सहारा लिया जाता है। आजकल सबसे अधिक बातें बीमारी दूर करने के नुस्खों को लेकर हैं। सोशल मीडिया पर डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, जोड़ों के दर्द से लेकर कैंसर तक सैकड़ों बीमारियों की बहुत सारी दवाएं बताई जा रही हैं। एक विधि में तो गेहूं को दस मिनट उबालकर अंकुर निकालने के लिए कहा गया है। सामान्य समझ की बात है कि अनाज उबलने के बाद उसमें से अंकुर नहीं निकल सकते। उसी तरह यह भी बताया जाता है कि कान पर जनेऊ रखने से कोई नस दब जाती है और मूत्र विसर्जन में सुविधा होती है।
भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है। इसमें दर्शनशास्त्रियों और चिकित्सकों के हवाले से यह तर्क दिया जाता है कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है या बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस में रक्त संचार नियंत्रित रहता है। आप बेहतर जानते हैं कि कान छिदवाने और सोचने की शक्ति बढ़ने के बीच कोई संबंध नहीं है, जितने डॉक्टर, वैज्ञानिक, दर्शनशास्त्री और बुद्धिजीवी हैं किसीने कान नहीं छिदवाये हैं लेकिन उनकी सोचने, अनुसन्धान करने और अविष्कार करने की शक्ति सर्वविदित है।
ऐसे ही विधवा स्त्री को सिंदूर न लगाने अथवा श्रृंगार न करने के बारे में तर्क दिया जाता है कि सिंदूर में हल्दी, चूना और मरकरी होता है। यह मिश्रण शरीर के रक्तचाप में वृद्धि करता है जिससे यौन उत्तेजनाएं बढ़ती हैं, इसीलिये विधवा औरतों के लिये सिंदूर लगाना वर्जित है। यही छद्मविज्ञान है। हम सब जानते हैं कि सिंदूर से यौन उत्तेजना बढ़ने की बात बेतुकी है। उत्तेजना या रक्तचाप का संबंध मनुष्य के मस्तिष्क से है न कि बाहरी भाग पर लगाये सिन्दूर से।
ऐसे ही छद्म विज्ञान के अनेक उदाहरण हम देख सकते हैं। कोई कहता है कि दक्षिण की ओर सर करके सोने से आपके शरीर के लोहे पर चुंबकीय असर होता है, पूर्णिमा के दिन सर के भीतर का पानी चन्द्रमा के चुंबकीय आकर्षण की वजह से आसमान की ओर बढ़ता है और पागल होने की संभावना रहती है, चरण स्पर्श करने से कॉस्मिक एनर्जी का प्रवाह होता है। किसी सन्देश में यह बताया जाता है कि नाखूनों को आपस में तेजी से रगड़ने पर रक्त संचरण तेज होता है और गंजे के सर पर भी बाल उग आते हैं।
व्यावहारिक विज्ञान हमेशा ऐसे छद्मविज्ञान की पोल खोलने का कार्य करता है। जैसे अब हम जानते हैं कि दुनिया के सारे चमत्कार, हाथ की सफाई, उपकरण की बनावट अथवा रसायनों के प्रयोग से होते हैं। जैसे पोटेशियम परमेंग्नेट और ग्लीसरीन की सहायता से आग लगाई जा सकती है, एल्युमिनियम की फ्रेम पर सिल्वर क्लोराइड पाउडर लगाकर भभूत निकाली जा सकती है, नारियल में छुपे सोडियम पर मंत्र पढ़कर पानी छिड़क कर आग लगाईं जा सकती है। विज्ञान हमेशा झूठ की पोल खोलने या अफवाह को खारिज करने में अपनी भूमिका निभाता है।
मनुष्य के मस्तिष्क की विकलांगता का यह सिलसिला बहुत पुराना नहीं है जब तक मनुष्य विज्ञान की उपयोगिता नहीं समझता था तब तक उसे विज्ञान का महत्व भी नहीं मालूम था लेकिन जैसे ही उसने विज्ञान को जाना तुरंत अपनी मान्यताओं के साथ उसे जोड़ना शुरू कर दिया। इस तरह उसके दिमाग में एक विकृति उत्पन्न हो गई। लेकिन विज्ञान और छद्मविज्ञान को एक मान लेने के कारण सबसे अधिक नुकसान यह हुआ कि हमने विश्वास और अंध विश्वास मे अंतर करना छोड़ दिया।
धर्म और परम्पराओं के नाम पर भी हमें ठगा जाता है। एक बार दीपावली के समय की बात है। मेरा एक मित्र अविवाहित था और अकेला रहता था। उसके गृह में कोई गृहलक्ष्मी नहीं थी लेकिन धन की देवी लक्ष्मी पर उसकी आस्था थी। पूजन संपन्न होने के पश्चात मैंने अपने मित्र से कहा ‘चलो शहर की रौशनी देखकर आते हैं।’ हम लोग जब निकलने लगे तो मैंने उससे कहा ‘दरवाजा बन्द कर ताला तो लगा दो।’ उसने सहजता से कहा ‘आज के दिन लक्ष्मी कभी भी आ सकती है इसलिए द्वार पर ताला नहीं लगाया जाता।’ जब हम लोग लौटे तो चोर लक्ष्मीजी के पास रखी थोड़ी सी नकदी पर हाथ साफ कर चुके थे। मैंने हंसते हुए कहा ‘देख लो, यह क्यों भूल गए कि जिस खुले दरवाजे से लक्ष्मी आ सकती है उससे जा भी तो सकती है।’ तात्पर्य यह कि हमें अपनी आस्था के साथ सायास विश्वास और अंधविश्वास के इस दुष्चक्र से निकलना बहुत जरूरी है। अन्यथा हम जीवन भर उन्हीं मान्यताओं और जर्जर हो चुकी परम्पराओं को ढोते रहेंगे और इसका नुकसान उठाते रहेंगे।
इस पूंजीवादी व्यवस्था ने अनेक शातिर लोगों को जन्म दिया है। तकनीक के साथ साथ ठगने के नये तरीके भी आ गए हैं आपका मोबाइल यंत्र ही ठगों की बहुत मदद करता है। चालाक लोग, सामान्य लोगों की इस मनोवृति से हमेशा फायदा उठाते हैं और अक्सर सीधे-सादे लोग अंधविश्वास या उस पर आधारित ठगी का शिकार बन जाते हैं। हम लाख सतर्कता बरतें लेकिन कहीं ना कहीं तो ठगे जाते ही हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सहज हो, सरल हो और इस प्रकार की दुर्घटनाओं से रहित हो तो इसके लिए हमें वास्तविकता जानने के साथ साथ स्वयं को प्रशिक्षित करने की शुरुआत करनी होगी। सबसे अधिक आवश्यकता होगी इतिहास और विज्ञान का अध्ययन कर इतिहास बोध एवं वैज्ञानिक सोच जागृत करने की।
आप कहेंगे व्यस्तता के इस युग में अपनी रोजी-रोटी के लिए जद्दोजहद करते हुए इतनी फुर्सत कहां है जो अपने वैज्ञानिक प्रशिक्षण के लिए मनोविज्ञान, प्रकृति विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक शास्त्र, रसायन विज्ञान आदि की किताबें पढ़ें। इतनी किताबें पढ़ने की आवश्यकता नहीं है, आप तो सिर्फ उन विषयों का स्मरण करें जिन्हें बचपन से लेकर अब तक आपने अपनी शालेय व महाविद्यालयीन शिक्षा के अंतर्गत पढा ़है। इतनी समझ तो हम में है कि बिना किताबें पढ़े भी हम अपनी सहज बुद्धि से आज जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है उसका वैज्ञानिक विश्लेषण तो कर ही सकते हैं। तर्क के आधार पर विश्वास और अंधविश्वास के बीच अंतर करते हुए अनेक मिथ्या बातों को खारिज भी कर सकते हैं।
सामान्यतः हम अपने दैनन्दिन जीवन में ऐसा करते भी हैं। लेकिन कई बार स्थायी रूप से इसका प्रभाव नहीं पड़ता। कुछ समय बाद हम इसे भूल जाते है और दोबारा फिर उसी तरह की किसी घटना का शिकार हो जाते हैं। शायद इसीलिए आये दिन हम अखबारों में ठगी की वही वही खबरें पढ़ते है‧‧ ‘नकली सोना देकर ठगा गया’, ‘नकली बाबा बनकर जेवरात ले गया’, ‘झाड़ फूंक से बच्चे की मौत’, ‘ए टी एम से ठगी’, ‘नकली फोन काल से ठगा गया’, ‘साईट पर क्लिक करते ही खाते से पैसा गायब’ आदि आदि। हम पढ़े-लिखे लोग ऐसे लोगों की मूर्खता पर हंसते हैं और सोचते हैं कि काश इस तरह ठगे जाने से पहले लोग इसके बारे में जान जाते। लेकिन हम पढ़े-लिखे लोग और भी उन्नत तरीके से ठगे जाते हैं और इसका हमें पता भी नहीं चलता।
उदाहरण के तौर पर मेरी जानकारी में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने सौ ग्राम की टुथपेस्ट की ट्यूब से पेस्ट निकालकर जांचा हो कि वह सौ ग्राम है या नहीं। न हम पेट्रोल की जांच करते है न गैस की, न गंगा जल लिखी बोतल की, कि उसमे गंगा का जल है या नहीं। हम भव्य मॉल्स में जाते हैं और वहां जिस मूल्य पर जो वस्तु मिलती है उसे खरीद लेत हैं। सुन्दर पैकिंग में साठ रूपये में दो भुट्टे खरीदते हुए क्या आप सोचते हैं कि इसमें से किसान को दो रुपये भी मिलता है या नहीं? आपने कभी जानना चाहा कि जिन वस्तुओं को आप खाद्य के रूप में उपयोग कर रहे हैं उनमें क्या मिला है? या जो पैकेट पर लिखा है वह सामग्री उसमें है या नहीं? या उसकी वास्तविक कीमत कितनी है? आपके मोहल्ले में जब सड़क या कोई सार्वजानिक इमारत बनती है तो आपने कभी वहां जाकर देखा है कि रेत में कितनी सीमेंट मिलाई जा रही है, चंदा मांगने वाले चंदे का क्या उपयोग करते हैं आपने कभी पूछा है? अगर कोई एजेंट किसी काम के लिए आपसे शुल्क मांग रहा है तो उस का वह क्या उपयोग कर रहा है, कभी आपने जानना चाहा है?
हम बहुत सारे विश्वासों की जांच करना चाहते हैं लेकिन हमें विश्वास दिला दिया जाता है‧‧‧ ‘ऑल इस वेल’। कई बार विश्वास करने के लिए धर्म, ईश्वर और भाग्य के नाम पर भी हमें बाध्य किया जाता है कि हम आंख मूंदकर उस पर विश्वास कर लें जो हमें बताया जा रहा है। किसी बात के लिए कोई तर्क न करें। कृपा जैसी कोई चीज नहीं होती फिर भी एक पाखंडी बाबा कहता है कि कृपा आ रही है तो हम विश्वास कर लेते हैं। हम ठगे जाने से कैसे बचें रहें और कोई अंधविश्वास हमारा कोई नुकसान न कर सके इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है हमारे जीवन में और हमारे आसपास घटित होने वाली हर घटना के पीछे का कारण जानना। इसके लिए हमारे पास पर्याप्त वैज्ञानिक चेतना तथा ऐतिहासिक ज्ञान का होना भी आवश्यक है। बिना इसके कुछ भी संभव नहीं है। यह चेतना हमारे मस्तिष्क के भीतर है, सिर्फ हमें उसका उपयोग करना है।
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शरद कोकास