सोशल मीडिया का गुलाम न बनें! पर क्यूँ?
कंप्यूटर के बाद मोबाइल क्रांति ने दुनिया को इतना सीमित कर दिया है कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि सचमुच पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में कैद होकर रह गई है। इसके पहले तकनीक ने मानव जीवन को इस हद तक पहले कभी नहीं बदला था। आज हम सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब हो गए हैं। न केवल अपनी बात दूसरों के समक्ष रख सकते हैं, बल्कि दूसरों के विचारों और दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली छोटी-बड़ी गतिविधि पर नजर रख सकते हैं। फेसबुक, टि्वटर आदि अनेक सोशल नेटवर्किंग साइटों ने मानव जीवन को किस हद तक प्रभावित किया है, उसका नमूना इस चुटकुले से समझा जा सकता है कि, पहले जब दो लोग आपस में झगड़ते थे तो तीसरा उन्हें समझाने जाता था। लेकिन आजकल यह तीसरा समझाने की बजाए वीडियो बनाने का काम करता है, ताकि उसे सोशल मीडिया में साझा कर सके।
सोशल मीडिया की शुरुआत साल १९९४ में हुई। लेकिन एक ताकत के तौर पर उसके उभरने की शुरुआत २००४ में हुई, जब फेसबुक अस्तित्व में आया। इसके बाद २००६ में टि्वटर और २००९-२०१० में वाट्सएप के आने तक दुनिया भर में सोशल साइट्स का नशा लोगों के दिमाग में खलबली मचाने लगा था। हम यह कह सकते हैं कि यदि फेसबुक एक देश होता तो आज वह जनसंख्या के मामले में चीन और भारत के बाद दुनिया का तीसरे नंबर का देश होता। आज दुनियाभर में करीब २०० सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं।
शुरू में सोशल मीडिया का काम लोगों को सामाजिक तौर पर एकदूसरे से जोड़ने और संवाद कायम करने तक सीमित था। लेकिन वक्त के साथ वह जरूरत बन गया। यह तो सोशल मीडिया के जनक लोगों ने भी नहीं सोचा होगा कि वह लोगों के जीवन में इस कदर दखल और खलल पैदा करना शुरू कर देगा और वह रिश्तों को बनाने / बिगाड़ने का कारण भी बन जाएगा। आज सोशल मीडिया गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड तलाशने, शादी करवाने से लेकर तलाक का कारण बन गया है।
सोशल मीडिया ने मानव जीवन को ही नहीं उसके आसपास की चीजों को भी तेजी से बदला है। राजनीति, शिक्षा, पत्रकारिता, व्यापार, मनोरंजन आदि में बदलाव तो आया ही, साथ ही उसके खान-पान, दिनचर्या और यहां तक कि उसकी जरूरतों को भी बदल डाला है। अब जमाना लाइन में लगने का नहीं, बल्कि ‘ऑनलाइन’ रहने का आ गया है।
आज सोशल मीडिया सरकारों को बनाने / बिगाड़ने में भूमिका निभाने लगा है। २००८ में अमरीका के चुनाव में बराक ओबामा ने इस मीडिया का सफल उपयोग किया। २०१४ के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। एक अध्ययन के मुताबिक करीब १५० लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत में सोशल मीडिया ने प्रभावी भूमिका निभाई। शायद यही कारण है कि आज हर छोटा-बड़ा नेता सोशल साइट पर अकाउंट खोले हुए नजर आता है। यह सोशल मीडिया की ताकत का ही परिणाम है कि गूगल जैसी कंपनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि सोशल नेटवर्किंग साइटों को नजरंदाज करना उसकी सबसे बड़ी भूल थी।
आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सोशल मीडिया पर की गई एक अपील पर महज एक दिन में एक करोड़ रुपये का चंदा जमा हो जाना और चलती ट्रेन में किसी लड़की को सहायता उपलब्ध हो जाना सोशल मीडिया के कारण ही संभव हो सका है।
अण्णा हजारे के आंदोलन को देश व्यापी बनाने और बढाऩे का काम सोशल मीडिया के चलते ही संभव हो सका। साल २०१२ में ‘निर्भया कांड’ के दोषियों के खिलाफ सोशल मीडिया के माध्यम से बनी देश के लोगों की एकजुटता ने तत्कालीन सरकार को महत्त्वपूर्ण कदम उठाने पर मजबूर किया। आज करीब तीन अरब वेबपेज प्रतिदिन सर्च किए जाते हैं। लोग तात्कालिक खबरों के लिए अखबार की बजाय इंटरनेट को अपना रहे हैं। पत्रकारिता का केंद्र ही अब सूचना तकनीक पर केंद्रित हो गया है।
ग्लोबल वेब इंडेक्स के मुताबिक आज करीब ढ़ाई अरब लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। भारत की बात करें तो यहां करीब ७० प्रतिशत के पास फोन हैं। इनमें से एक-तिहाई के पास स्मार्ट फोन हैं। इनमें फेसबुक पर करीब दो अरब लोग, टि्वटर पर करीब ३२ करोड़ लोग और लिंक्डइन पर करीब ५० करोड़ लोग सक्रिय हैं। लोगों के जीवन पर सोशल मीडिया किस कदर हावी है उसे अमेरीकी यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में मनोविज्ञान के प्रोफेसर टिमोथी विल्सन की एक रिपोर्ट से समझा जा सकता है। ‘साइंस मैगजीन’ में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक ६७ प्रतिशत पुरुष एवं २५ प्रतिशत महिलाएं इलैक्ट्रानिक गैजेट के बिना १५ मिनट भी सुकून से नहीं रह सके और उन्होंने इसकी जगह इलेक्ट्रानिक शॉक लेना पसंद कर लिया। हमारे यहां हर कुछ दिन बाद ऐसी खबरें आती रहती हैं जब कोई सेल्फी लेने के कारण अपनी जान गवां देता है। दूसरी ओर जाने कितनी ऐसी भी घटनाएं हाल के दिनों में सामने आईं जब टि्वटर के जरिए लोगों ने सरकार में जिम्मेदार पदों पर आसीन मंत्रियों या अधिकारियों से मदद मांगी और उन्हें मदद मिली। खासकर विदेश और रेल मंत्रालय इस मामले में सुर्खियों में रहे। मतलब यह कि अब गांव-देहात में बैठा कोई व्यक्ति भी अपनी बात सत्ता संस्थान तक पहुंचा सकता है।
सोशल मीडिया हमें हंसाता-गुदगुदाता है तो रुलाता भी है। नोटबंदी के दौर में सुर्खियों में आए ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’ के किस्से को भला कौन भुला सकता है। इसके अलावा भी सोशल मीडिया में लोगों के जीवन से जुड़े अजब-गजब किस्से देखने-पढ़ने को मिलते रहते हैं। अब यह उसके भी आगे बढ़ गया है। लोगों के आपसी संबंधों को प्रभावित करने के साथ ही तलाक का बड़ा कारण भी बनता जा रहा है। वह अफवाह फैलाने और अपराध का माध्यम भी बन रहा है। निजी जीवन में दखलंदाजी और प्रेम आदि के कारण यह लोगों की जहां जान ले रहा है, तो कई मामलों में जीवन बचाने का काम भी बखूबी कर रहा है।
हाल की एक घटना याद दिलाएं, जब एक व्यक्ति ने अपनी शादी के महज दो घंटे बाद पत्नी को इसलिए तलाक दे दिया, क्योंकि उसने शादी की कुछ तस्वीरें अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया में साझा कर लीं। जनवरी २०१७ की एक अन्य घटना में हैदराबाद की मेहरेन नूर को अमरीका में रह रहे उसके पति ने वाट्सएप पर ही तलाक दे दिया तो सहारनपुर की ३ साल की बेटी की मां आफरीन को फेसबुक के जरिए अपने तलाक की जानकारी मिली।
सच्चाई तो यह है कि आम जन के लिए आज सोशल मीडिया सूचना एवं संचार का एक मजबूत जरिया है, जिसके जरिए वह अपनी बात बिना किसी बाधा के रख पाता है। यह तकनीक हर दिन, हर पल मानव की जीवनशैली में बदलाव ला रही है। जरूरत है तो बस इस बदलाव को सकारात्मक तरीके से आगे बढाऩे और इसके बहाने अपने जीवन को सरल-सुगम बनाने कि न इस माध्यम का दुरुपयोग कर अथवा गुलाम बन अपना जीवन बर्बाद कर देने की।