कहानी की नन्हीं दुनिया | अनुवर्तिका सोमवंशी | Little World of Storie’s | Anuvartika Somvanshi

Published by अनुवर्तिका सोमवंशी on   November 10, 2021 in   HindiReaders Choice

कहानी की नन्हीं दुनिया

कहानी का जन्म ही किस्‍सागोई से हुआ है। बच्चों के कोमल मन पर किस्से-कहानियों का बडा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बच्चे प्रायः आसान रास्ता ढूंढते हैं। सरल शब्दों में किसी कथा का रोचक ढंग से वर्णन करने से बच्चे बड़े चाव से कहानियों को सुनते हैं। ऐसी ही एक रोचक कहानी माँ अपने बेटे को सुनाती है –

‘मां, कह एक कहानी’

‘बेटा, समझ लिया क्या तूने,

मुझको अपनी नानी?’

ये कहानी गाकर यशोधरा अपने बेटे राहुल को सुनाती हैं। कहानी की बीच-बीच में बच्चा प्रश्न करता चलता है। यह बाल-मन में सहज रूप से बाल-सुलभ जिज्ञासा उत्पन्न करता है।

‘वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे

झलमल कर हिम बिंदु झिले थे

हल्के झोंके हिले-हिले थे

लहराता था पानी।’

इतना सुनते ही बच्चा आगे बड़े कौतूहल में मां के वाक्य कथन को दुहराते हुए ही प्रश्न कर उठता है –

लहराता था पानी?

हां, हां यही कहानी।

अर्थात वह मां को स्वीकृति भी देता है कि मां यही कहानी मुझे सुननी है। यह तो बहुत प्रिय कहानी है। मां फिर आगे बताओ इस कहानी में फिर क्या हुआ। इस तरह जब भी मां, नानी या दादी बच्चों को अपने पास बिठाकर या रात में अपने साथ लिटाकर जब कहानी सुनाती हैं – तो उन बच्चों में धीरे-धीरे कई गुणों का विकास बड़े स्वाभाविक रूप से होने लगता है। ये गुण हैं – उत्सुकता, जिज्ञासा, कल्पनाशीलता, पारिवारिक प्रेम, करुणा, दया, उत्साह आदि।

वीर शिवाजी को बचपन में उनकी मां जीजाबाई, रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक-ऐतिहासिक कहानियां सुनाया करती थीं।  इन कहानियों में कहीं न्यायप्रियता, वीरता, धर्म परायणता, स्त्री जाति के प्रति आदर, दीन-दुखियों के प्रति सद्भाव और करुणा की मिसालें हुआ करती थीं। राजा हरिश्चंद्र की सत्य निष्ठा की कहानी सुनकर ही महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी बन पाए थे। बच्चों के कोरे मस्तिष्क कच्चे घड़े के समान होता है।  कच्चे घड़े को जिस रंग में रंगे, पकने पर वही रंग पक्का हो जाता है। उस पर जैसे चित्र उकेरेंगे, वही चित्र पक्का हो जाता है। बड़े होने पर अनेक प्रसंगों में जब वह किसी विचारों के दोराहे-चौराहे पर खडा ़होता है तब वह बचपन में सुनी इन्हीं कहानियों से रोशनी खोजता है।

बच्चों को कहानी सुनाकर उनके मन में कुछ रचनात्मक करने का विचार सरलता से पैदा किया जा सकता है। हम सबको बचपन में दादी मां से ऐसी कहानियां सुनने का अवसर मिला है। हम पूछते – ‘दादी, इतनी ढेर सारी कहानियां आपको कहां से मालूम हो जाती हैं? तो वे तुरंत कहतीं – तुम लोग भी मालूम कर सकते हो – इन पत्र-पत्रिकाओं से। फिर हम चंपक, नंदन, चंदा मामा, बाल भारती, बालहंस जैसी पत्रिकाएं पढ़ने लगे। आगे चलकर इन पत्रिकाओं के साथ ही धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, सारिका, मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाएं पढ़ने के अवसर भी प्राप्त हुए। इन कहानियों की खोज करते करते हम प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, वृंदावन लाल वर्मा, जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी जैसे बड़े साहित्यकारों के अनेक उपन्यास और कहानियां इंटरमीडिएट और बी‧ए‧ की कक्षाएं पास करने तक में पढ़ गए। सोचती हूं, यदि बचपन में अपनी मां और दादी से छोटी-छोटी कहानियां सुनने का अवसर ना मिला होता तो मैं यह लेख लिखने की स्थिति में भी न होती ।

आज का परिवेश बिल्कुल भिन्न हो गया है। संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार हो गए हैं। आधुनिकता का रंग पूरे समाज पर तारी हो गया है। हमारे बचपन के रेडियो पीछे छूट गए। टीवी, मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट के इस युग में बड़े बदलाव आ गए हैं। न मां- बाप के पास बच्चों के लिए अवकाश है और ना बच्चों के पास ही उनकी बातें सुनने की फुरसत। महानगरी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो गई है कि बच्चों के पास भी मनोरंजन और अतिरिक्त साहित्य पढ़ने का अवकाश नहीं रहा। बच्चों में नैतिक मूल्यों और सामाजिक सरोकारों के प्रति उदासीनता का भाव पैदा होने लगा है। इन भयावह परिणामों से बचने के लिए हमें फिर से नानी-दादी की कहानियों की ओर बच्चों को लौटाना पड़ेगा। हमें व्यस्त दिनचर्या में कुछ आधुनिक तकनीकों से जुड़कर पुरानी परंपराओं की खुशबू को सहेजना होगा, उन्हें बचाए रखना होगा ।

आजकल बहुत सी ऐसी ऑनलाइन साइट्स और मोबाइल एप उपलब्ध हैं जिसमें लोग छोटे बच्चों के लिए कहानियां सुनाते हैं, जिसे स्टोरी पॉडकास्ट कहा जाता है ।

कुछ साइट्स और एप के नाम मैं यहां उल्लिखित कर रही हूं – Spotify, Jio saavn, Google podcast, Hubhopper. इसके अलावा आकाशवाणी ने लॉक-डाउन के दिनों में पंचतंत्र की कहानियों की एक पूरी श्रृंखला चलायी थी—जो यूट्यूब पर उपलब्‍ध है। अमर चित्र कथा ने भारतीय संस्‍कृति और इतिहास से जुड़े महापुरुषों पर अनेक कॉमिक्‍स निकाली हैं। बच्‍चों की लिए सभी भाषाओं में पत्रिकाएं आती हैं। चंपक और नंदन के अलावा साइकिल और प्‍लूटो जैसी पत्रिकाएं हैं, जिनके जरिए बच्‍चों को जानकारियां देने और वैज्ञानिक सोच विकसित करने की कोशिश की जाती है ।

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अनुवर्तिका सोमवंशी